इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक मामला
- खून-पसीने की कमाई डूबने के कगार पर
- सवा पंद्रह करोड़ का भुगतान अब तक नहीं
रायपुर, 20 जून। 'जिंदगी भर रुपया-पैसा जोड़कर बेटी की शादी के लिए थोड़ा बहुत पैसा जमा किया था पर शायद किस्मत को हमारी खुशी मंजूर नहीं थी, वह पैसा भी बैंक घोटाले की भेंट चढ़ गया।Ó यह कहना है इंदिरा प्रियदर्शिनी सहकारी बैंक के खातेदार तथा पान की दुकान चलाने वाले राकेश सोनी का। बैंक घोटाले के लगभग 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी एक लाख से अधिक की राशि वाले खातेदारों के पैसों का भुगतान नहीं किया जा सका है और अब तो खातेदारों को अपना रकम वापस मिलने की उम्मीद भी टूट चुकी है। घटना को याद करने पर आज भी इनकी आंखें नम हो जाती हैं यही स्थिति बैंक के लगभग सभी खातेदारों की है जिनमें किसी ने बेटी की शादी के लिए पैसा जमा किया था तो किसी ने सेवानिवृत्त होने के बाद जीवनभर की जमा पूंजी से बेफिक्र होकर जीवन चलाने आएगा। बैंक में जमा कराया था। मुख्यमंत्री सहित तमाम जनप्रतिनिधियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों से आश्वासन मिलने के बावजूद राशि अब तक नहीं मिली है। समय बीतने के साथ ही मामला भी दब सा गया लगता है। 3 अगस्त 2006 को बैंक बंद होने के बाद केवल उन खातेदारों को जिनकी कुल जमा रकम एक लाख रुपये से कम थी उन्हें ही डिपाजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कार्पोरेशन मुम्बई से 13 करोड़ प्राप्त कर दिए गए हैं उसके बाद बचे खातेदारोौं की ओर अब तक किसी ने ध्यान नहीं दिया और न ही आरोपियोौं से बकाया राशि वसूली की जा सकी है। परिसामपक कार्यालय के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अब तक लगभग 14,69,27000 रुपये 1 लाख से कम जमा करने वाले खातेदारों को भुगतान किया जा चुका है। अभी भी उन खातेदारों को जिनकी जमा राशि 1 लाख से अधिक है उन्हें लगभग 15,21,888,90 रुपये का भुगतान किया जाना शेष है। इस मामले में पूर्व में गिरफ्तार आरोपियों जो वर्तमान में जमानत पर रिहा हैं से लगभग 21,09,000 रुपये की राशि वसूल की जानी है जिसे वसूला नहीं जा सका है। जब तक इनसे बकाया राशि की वसूली नहीं की जाती खातेदारों का पैसा देना संभव नहीं है। इस मामले में न्यायालय के फैसले का भी इंतजार किया जा रहा है जिसके पूर्व यह नहीं कहा जा सकता कि खातेदारों को उनकी बकाया राशि मिल भी सकेगी या नहीं। वहीं ऐसे खातेदार जिन्होंने आज तक अपनी राशि प्राप्त नहीं की है उनके संबंध में कहना है कि इन खातेदारों के फर्जी होने की आशंका है। घटना के बाद गिरफ्तार आरोपियों का नार्कों टेस्ट भी कराया गया था पर उसकी रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई और न ही टेस्ट के अनुरुप कार्रवाई ही की गई। इस दौरान नार्को टेस्ट की सीडी तैयार होने तथा उस सीडी के तथाकथित सौदेबाजी का मामला भी प्रकाश में आया पर समय के साथ ही यह मामला भी दब गया। परिसमापक के द्वारा इस मामले में 24/12/2009 को पंजीयक सहकारी संस्थाएं को पत्र लिखकर पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच हेतु शासन को प्रस्ताव भेजने की अपील की गई तथा इसी पत्र के आधार पर पंजीयक द्वारा दिनांक 4/2/2010 को सहकारिता विभाग के सचिव से मामला सीबीआई को सौंपने की मांग की गई पर अब तक मामला सीबीआई को नहीं सौंपा गया । इस दौरान आरोपियों को बचाने का आरोप भी राज्य सरकार पर लगता रहा जिससे सरकार की काफी किरकिरी भी हुई। गौरतलब है कि इस पूरे प्रकरण में कई बड़ें नामों के शामिल होने की आशंका है जिनके नाम सीबीआई जांच के बाद सार्वजनिक होने पर प्रदेश की राजनीति में भूचाल भी आ सकता है। शुरु से ही मामले को दबाने में लगी सरकार किसी भी तरह के जांच के पक्ष में नजर नहीं आती वहीं अधिकांश खातेदार भी अब किस्मत का खेल मानकर पैसा वापस मिलने की आस छोड़ चुके हैं तथा आज भी कुछ खातेदार रोते बिलखते हुए परिसमापक कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। बहरहाल 6 वर्ष बीतने के बाद भी इस मामले में ठोस कार्रवाई नहीं होने तथा पैसा नहीं मिलने से बैंक के खातेदारों में खासा आक्रोश व्याप्त है। मामले की सीबीआई जांच हो :- इस मामले में लम्बे समय तक आंदोलन करने वाले इंदिरा बैंक नागरिक संघर्ष समिति के अध्यक्ष कन्हैया अग्रवाल का कहना है कि घोटाले के लगभग 6 वर्ष बीत जाने के बाद भई खातेदारों को अब तक पैसा नहीं मिला है। सरकार इ पूरे मामले को दबाना चाहती है शासन से जुड़े कई बड़े नाम इस घोटाले में शामिल हैं। वर्तमान में सभी आरोपी जमानत पर बाहर हैं। लोन लेकर पैसा खा जाने वाले आरोपियों से अब तक बकाया राशि की वसूली नहीं हो चुकी है। इससे स्पष्ट है कि सरकार आरोपियों को बचाना चाहती है। इस प्रकरण की सीबीआई जांच जरुर होनी चाहिए जिससे घोटाले के आरोपियों से बकाया राशि वसूल हो सके तथा उन्हें सजा हो और खातेदारों को उनके पैसे लौटाए जा सकें।