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Wednesday 18 July 2012

युवक कांग्रेस चुनाव की हलचल तेज

रायपुर, 10 जून। युवक कांग्रेस का सदस्यता अभियान 24 मई से प्रारंभ होने के बाद युवक कांग्रेस चुनाव की हलचल दिनों दिन तेज होती जा रही है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव लडऩे के इच्छुक दावेदार अधिक से अधिक सदस्य बनाने और बूथ स्तर पर अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में लगे हैं। इस बीच यह तय माना जा रहा है कि इस बार भी सीधी टक्कर संगठन खेमे और जोगी खेमे के बीच ही होगी। हालांकि दोनों ही खेमों ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं पर माना जा रहा है कि संगठन खेमा दीपक मिश्रा को फिर से चुनाव में उतार सकता है। वहीं जोगी खेमा किसी नये प्रत्याशी की जुगत में लगा है। चुनाव की प्रक्रिया में परिवर्तन के बाद इस बार 50 हजार से अधिक बूथ स्तर पर चुने गये पदाधिकारी विधानसभा लोकसभा और प्रदेश कमेटी के लिये वोट करेंगे साथ ही नयी प्रक्रिया के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष पद का चुनाव भी वहीं लड़ सकेंगे जो पिछली बार विधानसभा अथवा लोकसभा की कमेटी में चुनकर आये थे। गौरतलब है कि विधानसभा और लोकसभा कमेटी में आने के लिए दावेदारों को बूथ कमेटी के चुनाव में जीतना जरूरी है। यही वजह है कि सभी दावेदार बूथ स्तर पर जीतने के लिये सर्वाधिक प्रयास कर रहे हैं साथ ही विरोधियों ने एक दूसरे का रिकार्ड भी निकालना प्रारंभ कर दिया है जिससे आने वाले समय में दावा आपित्त पेश कर विरोधियों को मात दी जा सके। बहरहाल चुनाव की हलचल तेज होने के साथ ही गुटबाजी और आपसी कलह भी सतह पर आ गयी है। सभी दावेदार सदस्यता अभियान के लिये लगाये गये बैनर पोस्टरों के माध्यम से खुलकर शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं जिससे आने वाले समय में चुनाव के और भी रोमांचक मोड़ लेने की संभावना बनी हुई है।

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कुएं में फौव्वारा आकर्षण का केंद्र

रायपुर, 10 जून। नगर के बीचों बीच सप्रे स्कूल के सामने लगभग 30 वर्ष पुराने कुएं में लगा फौव्वारा इन दिनों आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। गर्मी से बेहाल लोग बड़ी संख्या में शाम को आनंद लेने और पानी की पुहारों से शीतलता प्राप्त उसे यहां पहुंच रहे हैं। लोगों की आवाजाही को देख कर चाट गुपचुप वालों ने भी यहां पर ठेले लगाने शुरू कर दिये हैं जिससे फौव्वारे के सामने चौपाटी जैसा माहौल नजर आने लगता है। चौड़ी सड़कें और स्ट्रीट लाइटों की मध्यम रौशनी भी शाम के नजारे को खुशनुमा बना देती है क्षेत्रवासियों ने बताया कि कुछ दिन पूर्व तक इसी कुएं में लोग कचरा डाला करते थे धीरे-धीरे यह पटने लगा था पर इसकी साफ सफाई व रंगीन फौव्वारा लगने के बाद यही कुआ राजधानी की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा है। बहरहाल अब निगम प्रशासन से यही आशा की जा रही है कि यह खूबसूरत रंगीन फौव्वारा हमेशा अपनी खूबसूरती को बनाए रखे और नगर के अन्य फौव्वारों की तरह चार दिन की चांदनी बनकर न रह जाए. 
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अस्थायी कनेक्शन लगाने के नाम पर वसूली

रायपुर, 15 जून। छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी में इन दिनों अस्थायी कनेक्शन लगाने के नाम पर अनाधिकृत रूप से वसूली का मामला प्रकाश में आया है। निर्धारित शुल्क के अतिरिक्त राशि की मांग उपभोक्ताओं से बेखौफ की जा रही है। निर्माणाधीन मकानों तथा विभिन्न कार्यक्रमों के लिये उपभोक्ताओं द्वारा अस्थायी कनेक्शन लगवाया जाता है पर कनेक्शन लगाने के लिये उपभोक्ताओं से अतिरिक्त राशि की मांग की जाती है देने पर कई दिनों तक कार्यालय के चक्कर लगवाए जाते हैं। मजबूरीवश उपभोक्ताओं द्वारा मांगी गयी राशि दे दी जाती है। निर्धारित अवधि के लिये लगाए गये कनेक्शन की समय सीमा बढ़ाने के लिये भी उपभोक्ताओं से इसी तरह की मांग की जाती है। इसके अतिरिक्त अपने बताये गये विद्युत ठेकेदारों से ही फार्म भरवाने कहा जाता है। डंगनिया कार्यालय में गृह निर्माण हेतु अस्थायी कनेक्शन लगवाने आये एक उपभोक्ता ने बताया कि उसके द्वारा 20 दिनों पूर्व निर्धारित शुल्क सहित मांग गये कागजात कार्यालय में जमा करा दिये गये हैं पर अब तक कनेक्शन नहीं लगाया गया है। अधिकारियों से पूछने पर कोई ठोस कारण नहीं बताया गया। गौरतलब है कि जहां एक ओर बिजली बिलों में गड़बड़ी को लेकर विद्युत मंडल निशाने पर है वहीं अब इस तरह का मामला सामने आने से उपभोक्ता खासे नाराज हैं। विद्युत मंडल की कार्यप्रणाली को लेकर भी कई तरह के सवाल उठने लगे हैं।

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एलपीजी की अवैध बिक्री

रायपुर, 15 जून। प्रशासन के लाख दावों के बाद भी रसोई गैस की कालाबाजारी एवं अवैध बिक्री बेधड़क जारी हैं। राजधानी के टिकरापारा, लाखेनगर, ईदगाह भाठा, सारथी चौक जैसे इलाकों में सिलेंडरों की अवैध बिक्री होते आसानी से देखी जा सकती है। शादी विवाह तथा तीज त्यौहारों का फायदा उठाकर इनके द्वारा दुगनी कीमत पर सिलेंडरों की बिक्री की जाती है। एक तरफ जहां उपभोक्ताओं को नंबर लगाने के 10-15 दिनों बाद भी सिलेंडर उपलब्ध नहीं हो पा रहा है वहीं दूसरी ओर सिलेंडरों की अवैध बिक्री प्रशासनिक दावों की पोल खोलने को पर्याप्त है। सैकड़ों की संख्या में सिलेंडरों की बिक्री फर्जी कार्ड के माध्यम से की जा रही है यह कारोबार रिहायशी इलाकों के घरों से संचालित किया जा रहा है। ऐसे में कभी भी किसी बड़ी दुर्घटना से इंकार नहीं किया जा सकता। इस तरह का कारोबार प्रशासनिक सहयोग के बिना संचालित नहीं किया जा सकता। इस कारोबार में कुछ बड़े नामों के भी शामिल होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। बहरहाल आवश्यकता इस बात की है कि उच्चाधिकारियों द्वारा इस मामले को स्वयं संज्ञान में लेकर ऐसे कारोबारियों पर ठोस कार्रवाई की जाये क्योंकि रिहायशी इलाकों में बड़ी संख्या में सिलेंडर इनके द्वारा संग्रहित करके रखे गये हैं जिससे किसी भी वक्त बड़ी दुर्घटना हो सकती है। इन पर कार्रवाई होने से जनता को सिलेंडर के लिये परेशान भी नहीं होना पड़ेगा।
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कांजी हाऊस में गायों का बुरा हाल


रायपुर, 18 जून। नगर में अवारा मवेशियों को पकडऩे के बाद कांजी हाऊस में रखा जाता है जहां उन्हें नियमित रूप से चारा पानी सहित अन्य आवश्यक सुविधायें प्रदान किए जाने का प्रावधान है। परंतु रायपुर में नगर पालिक निगम द्वारा संचालित कांजी हाऊस में इन दिनों मवेशियों की बेहद बुरी स्थिति है। सबसे दयनीय स्थिति नगर के विभिन्न स्थानों से पकड़ी गयी गायों की है जिन्हें पर्याप्त भोजन तक नहीं मिल पा रहा है जबकि नियमानुसार पर्याप्त चारा पानी सहित अन्य आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था करना अनिवार्य है। इसके लिए निगम प्रशासन की ओर से राशि की घटाया भी की गयी है पर कांजी हाऊस की बदहाली से स्पष्ट है कि मवेशियों के चारा पानी के नाम पर निकलने वाली राशि को भी लोग डकार रहे हैं। टिकरापारा और लाखेनगर में स्थित कांजी हाऊस की स्थिति तो और भी बदतर है। यहां रखी गायें बेहद कमजोर और दयनीय स्थिति में हैं। लाखेनगर स्थित कांजी हाऊस को ले जाने आए एक व्यक्ति ने बताया कि विगत तीन-चार दिनों पूर्व उसकी गाय को यहां लाया गया था पर तब से पर्याप्त मात्रा में चारा नहीं दिया जा रहा है इससे गाय बेहद कमजोर हो गयी है। कमोबेश ऐसी ही स्थिति सभी कांजी हाऊस की है जहां पकड़े गये मवेशियों की बदतर स्थिति है। इस संबंध में अधिकारियों से पूछे जाने पर उन्होंने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। अधिकारियों के इसी उदासीन रवैये के चलते गौ माता कही जाने वाली गायों की इन दिनों बेहद खराब स्थिति है जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। बहरहाल गाय से लोगों की धार्मिक आस्था जुड़ी होने के कारण गाय की कांजी हाऊस में बदहाली से गौसेवकों तथा गौ मालिकों में निगम प्रशासन के प्रति गहरा आक्रोश व्याप्त है।

इन स्थानों पर चलेंगी सिटी बसें


रायपुर, 20 जून। लंबे समय से चल रहे प्रयासों के बाद बहुत जल्द 12 बड़ी बसें तथा 65 मिनी बसें रायपुर की सड़कों पर दौड़ती नजर आयेंगी अब इन बसों के लिये सटों के निर्धारण की प्रक्रिया तेज कर दी गई है।। जनता से भी सुझाव मांगे जा रहे है। जिन स्थानों पर बड़ी बसों को चलाने की योजना बनाई जा रही उसमें रायपुर से कुम्हारी टोल प्लाजा रायपुर से उपरवारा, रायपुर से माना कैम्प होकर देवपुरी, रायपुर से माना केम्प होकर व्हीआईपी रोड माना विमानतल, रायपुर से अमलेश्वर, रायपुर से धरसींवा व रायपुर से दोन्दे होकर जीरो पाइंट, रायपुर से नवागांव (आरंग) प्रमुख है। वही छोटी बसों को नगर के अंदरूनी बस्ती तथा कालोनियों में चलाया जाएगा जिनमें उन स्थानों को प्राथमिकता देने की बात की जा रही है जहां तक पहुंचने के लिये परिवहन की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। रेलवे स्टेशन तथा बस स्टैण्ड से आऊटर पर स्थित शासकीय कार्यालयों तक भी बसें चलाई जाएगी जिससे बाहर से अपना काम करवाने ओ वाले लोगों को कम कीमत में परिवहन की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। इस संबंध में नगर निगम के द्वारा जनता से सुझाव भी आमंत्रित किये गये हैं।

ई-मेल ने घटाई डाकघरों की आय

"पत्र जो पहले कभी थे रिश्तों के आधार आज अपने पंख खोकर खो चुके वह धार 

मोबाईल और मेल ने अब छोटा किया संसार आज क्षण में हम पहुंचते सात सागर पार"


रायपुर, 24 जून। एक वक्त था जब हर रोज हर घर में डाकिए के आने का इंतजार बेसब्री से किया जाता था। अब वक्त बदल गया है। टेक्नालाजी का जमाना है। डकिया का वजूद आज भी है लेकिन अब उनका इंतजार नहीं होता क्योंकि हर घर में अब सुबह से रात तक कम्प्यूटर पर कई बार ई-मेल खोले जाते है। नतीजा डाकघरों के माध्यम से पत्र भेजने व पाने की संख्या घटकर आधी से भी कम हो गई है। इससे डाकतार विभाग की आमदनी का ग्राफ भी काफी नीचे आ गया है। नतीजा अब डाकघरों को आय बढ़ाने पोस्टकार्ड, लिफाफा के साथ घड़ी, सोना, आवेदन पत्र बेचने पड़ रहे हैं। आने वाले दिनों में ऐसा न हो कि डाकघरों में तरकारी, अनाज, कपड़े आदि भी मिलने लग जायेंगे। क्योंकि डाक सामग्रियों की बिक्री अत्यंत कम हो गई है। संदेश भेजने का इतिहास काफी पुराना है। पहले हरकारे कई दिनों की यात्रा कर निर्धारित स्थान व व्यक्ति तक संदेश पहुंचाते थे। फिर लिखित फरमान व चिट्ठी पहुंचाने के लिये प्रशिक्षित कबूतरों की भी मदद ली गई। इसके बाद टेलीग्राम (तार), टेलीफोन पोस्ट आफिस, स्पीडपोस्ट जैसे सरकारी साधन व कूरियर सर्विस निजी सेवा के रूप में आए। अब 21 वीं सदी के आधुनिक भारत में मोबाइल , ई-मेल इंटरनेट ने स्थान ले लिया है. अब पत्र लिखने पढऩे व भेजने पाने का मजा खत्म हो गया है डाकिए न पत्र के इंतजार का रोमांच अब कहां रहा। टेलीग्राम (तार) आने से अनहोनी की आशंका से जो डर समा जाता था उससे आज की पीढ़ी अंजान है। अब तो सब कुछ बटन दबाते ही फटाफट।  डाकघर तो पत्रों के आदान प्रदान के लिये तो जाने जाते हैं बल्कि अब इसकी पहचान सोने के सिक्के तथा घडिय़ों के विक्रय केंद्र के रूप भी होने लगी है। मुहर, खाकी वर्दी पहने पोस्टमैन और लाल रंग के डाक डिब्बे भी अब कम ही देखने को मिलते हैं। इनकी जगह अब फोन, फैक्स, मोबाईल इंटरनेट तथा फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्किग साइट्स ने ले ली है। पत्र अभिव्यक्ति का बेहद सशक्त व रोचक माध्यम है पर अब समयाभाव और सुविधाओं के अतिरेक के साथ ही पत्र विलुप्त होते जा रहे हैं। व्यक्तिगत पत्र तो गिने चुने ही लिखे जाते हैं वही कार्यालयीन पत्रों के लिये् फैक्स और ईमेल का प्रयोग किया जाने लगा है। मुख्य डाकघर से मिली जानकारी के अनुसार जहां पहले 10 से 15 हजार रूपये तक के पोस्टकार्ड डाक, टिकटें,लिफाफे, अंतर्देशीय आदि की बिक्री प्रतिदिन होती थी वहीं अब बमुश्किल 1000 से 1500 रूपये तक की बिक्री प्रतिदिन होती है। आजकल डाकघर सोने के सिक्के तथा एचएमटी की घडिय़ों के शोरूम के रूप में अपनी पहचान बना रहा है वहीं प्रतियोगी परीक्षाओं के फार्म का विक्रय भी समय समय पर यहां से किया जाता है। आज से 10-15 साल पहले और अब की स्थिति की तुलना की जाये तो डाकघरों में व्यापक परिवर्तन हुआ है। किसी समय में पत्रों की आवाजाही सहित अन्य सभी कार्य हाथों से किये जाते थे पर अब डाकघर के कर्मचारियों के हाथों में लाल नीले कलम के स्थान पर कार्ड लैंस माऊस नजर आते है।  सारे रिकार्ड मोटी-मोटी फाइलों के स्थान पर कम्प्यूटर में रखे जाते हैं। कभी पत्रों के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने में समय लगता था पर अब ऐसा नहीं है पत्र कम समय पर ही अपनी मंजिल तक पहुंच जाते हैं। निजीकरण का प्रभाव भी डाकघरों पर पड़ा है। अब कोरियर सेवाओं द्वारा पत्रों और पार्सलों को बेहद कम समय में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया जा रहा है जिससे लोग अब कोरियर कंपनियों पर अधिक विश्वास करने लगे हैं इसका सीधा असर डाकघरों के व्यवसाय पर हुआ है। पर पार्सलों तथा पत्रों की आवाजाही पर विचार किया जाये तो अब भी लगभग 20,000 पत्र तथा पार्सल मुख्य डाकघरों से उपडाकघरों तथा वहां से अपनी मंजिल तक पहुंचाए जाते हंै। वर्तमान में डाकघरों से संचालित होने वाला बैकिंग व्यवसाय खासी वृद्घि कर रहा है। पोस्टआफिसों में खातेदारों की संख्या में लगातार वृद्घि हो रही है। चालू खाते, बचत खाते आवर्ती जमा खाते आदि के माध्यम से डाकघर खातेदारों को अच्छी सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है। इसके अतिरिक्त डाकघर की बीमा योजनाएं भी लोगों में बेहद लोकप्रिय हैं। एजेंटों की संख्या की बात की जाए तो इसमें काफी कटौती हुई है इसके पीछे कारण लगातार घटते कमीशन को माना जा रहा है। गौरतलब है कि महात्मागांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में डाकघरों की महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि इस योजना में भुगतान का आधार ही डाकघर है। वहीं डाकघरों में लोग अब सोने के सिक्के और घडियां खरीदने के लिये भी बड़ी संख्या में आने लगे हैं। यहां आधा ग्राम से 50 ग्राम तक वजनी सोने के सिक्के तथा 350 रू. से लेकर 4300 रूपये तक की घडिय़ां उपलब्ध हैं। यहां बेचे जाने वाले सोने के सिक्कों में 99.9 प्रतिशत तक शुद्घता की गारंटी है जिससे लोग यहां से सोना खरीदना पसंद करते हैं। स्पीड पोस्ट भी लगातार हो रहे सुधारों के बाद अपनी लोकप्रियता को बनाए रखने में कामयाब हो पाया है आजकल रात 8 बजे तक स्पीड पोस्ट किया जाने लगा है जिससे लोगों को आसानी होती है। कम समय तथा विश्वसनीय होने के कारण लोग महत्वपूर्ण पत्रों कार्यालयीन पत्रों को स्पीड पोस्ट से ही भेजना पसंद करते हैं जिससे पहले की अपेक्षा स्पीड पोस्ट की संख्या में इजाफा हुआ है। समय बदलने के साथ डाकघरों का कार्यक्षेत्र उसका महत्व सब कुछ बदल गया है जहां पत्रों की संख्या में कमी आई वहीं पोस्टमैनों की संख्या भी लगातार घटते क्रम में है आज राजधानी रायपुर के मुख्य डाकघर में केवल 37 पोस्टमैन है इसके अतिरिक्त 17 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी भी है जो घरों में पत्र पहुंचाने का कार्य करते हैं। पोस्टमैनों की नई भर्ती नहीं होने के कारण पत्रों को पहुंचाने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी कम वेतन में ही अधिक कार्य करते हैं। 'पत्र जो पहले कभी थे रिश्तों के आधार आज अपने पंख खोकर खो चुके वह धार मोबाईल और मेल ने अब छोटा किया संसार आज क्षण में हम पहुंचते सात सागर पारÓ   डाक सामग्रियों के दर आज कल के बच्चों को पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय पत्र, मनीआर्डर व इसकी कीमत की जानकारी नहीं है। पोस्ट कार्ड    -    50 पैसे अंतर्देशीय    -    ढाई रूपये लिफाफा    -    पांच रूपये डाक टिकिटें    -    1,2,5,10,10,20 रूपये रजिस्टर्ड लिफाफा    -    22.50 रूपये स्पीड पोस्ट    -    25 रूपये न्यूनतम             (वजन अनुसार) खाता खोलने का न्यूनतम     -    100 रू. 

खुले में फेंका जा रहा है अंबेडकर अस्पताल का बायोमेडिकल कचरा


रायपुर, 4 जुलाई। प्रदेश के सबसे बड़े शासकीय चिकित्सालय अंबेडकर अस्पताल का बायोमेडिकल कचरा खुले मैदान में फेंके जाने से आसपास के लोग तथा निर्माणाधीन नर्सिंग कालेज के कर्मचारी बेहद परेशान हैं। अंबेडकर अस्पताल का कचरा जिसमें उपयोग किये गये प्लास्टिक बोतल निडिल्स दवाइयों के रेपर के साथ साथ और भी कई सड़ी गली चीजें होती है जो कि बायोमेडिकल वेस्ट कहलाती है। इस तरह के वेस्ट को खुले मैदान में फेंकने से कई तरह की बीमारियां फैलने और संक्रमण होने का खतरा बना हुआ है। पुरूष छात्रावास के पास फेंके जा रहे इस कचरे के ढेर में कई बार कटे हुए मानव अंग भी होते हैं जिससे संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है। आसपास काम कर रहे कर्मचारियों ने बताया कि इस संबंध में कई बार अस्पताल प्रशासन से खुले स्थान पर कचरा न फेंकने के लिये निवेदन किया जा चुका है पर अभी भी ऐसा किया जा रहा है। गौरतलब है कि जिस स्थान पर कचरा फेंका जा रहा है उसके पास ही पी.डब्लू.डी. का संभागीय कार्यालय एवं छात्र हास्टल है। अभी नर्सिंग कालेज का निर्माण भी किया जा रहा है। इस प्रकार यहां लोगों की आवाजाही लगातार बनी रहती है ऐसे स्थान पर बायोमेडिकल वेस्ट डाले जाने से लोग बेहद परेशान हैं। इस संबंध में पूछे जाने पर अस्पताल के सहायक अधीक्षक डॉ. ए.पी. पडरहा ने बताया कि बायोमेडिकल वेस्ट को उठाने के लिये भिलाई की एक कंपनी को ठेका दिया गया है चूंकि भिलाई से गाड़ी इसे उठाने आती है इसलिये समय लग जाता है पर कचरे को रोज उठाया जाता है हालांकि कचरे को देख कर यह स्पष्ट है कि यह बायोमेडिकल वेस्ट नियमित रूप से नहीं उठाया जा रहा है आसपास के लोगों का भी कहना है कि दो तीन दिनों तक यह वेस्ट खुले में पड़ा रहता है। मानव अंगों तथा अन्य सामग्रियों के होने के कारण कुत्तों और सुअरों का भी जमावड़ा लगा रहता है। इस तरह से कभी भी यहां खतरनाक बीमारियां फैल सकती है। सहायक अधीक्षक डॉ. पडरहा  के अनुसार इस अपशिष्ट के एक स्थान पर संग्रहित कर इसे उठवाने के लिये एक टे्रचिंग ग्राऊंड बनाने की योजना है जिसके लिये पहले जमीन नहीं मिल पा रही थी पर अब निगम के सहयोग से जमीन ढंूढ ली गई है। इसके लिये टेंडर की प्रक्रिया जारी है। बहरहाल यह बायोमेडिकल वेस्ट लोगों के लिये परेशानी का सबब बन चुका है।

विद्यालय बदहाल


रायपुर, 6 जुलाई। प्रदेश ंमें विद्यालय प्रारंभ हुए पखवाड़ा बीत चुका है पर अभी भी राजधानी के कई नगर निगम के विद्यालय बदहाली के शिकार है। ऐसे कई विद्यालय है जहां विद्यार्थियों के बैठने के लिये कुर्सी टेबल तक की व्यवस्था नहीं है। कई स्थानों पर छत की हालत इतनी जर्जर है कि किसी भी समय कोई अनहोनी हो सकती है। रामदयाल तिवारी स्कूल, खोखोपारा स्कूल, बूढ़ापारा का लड़की स्कूल ऐसे कई शासकीय विद्यालय है जहां अब तक मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जा सकी है। बूढ़ापारा स्थित लड़की स्कूल के एक कमरे में कर्मचारी संघ की एक शखा  ने कब्जा कर रखा है स्कूल में शाम होते ही शराबियों क जमावड़ा लग जाता है इसके अतिरिक्त यहां के शौचालय एवं मूत्रालय में ताला जड़ दिया गया है जिससे छात्राओं को विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इसी तरह आमापारा स्थित रामदयाल तिवारी स्कूल की छत से बारिश के दिनों में पानी टपकता है। बच्चों के खेलने का मैदान भी बारिश के दिनों में तालाब में तब्दील हो जाता है। प्राचार्य ने बताया कि इस संबंध में विद्यालय प्रशासन से जो संभव हो सकता है कार्रवाई कर रहे हैं तथा शासन को भी इसकी जानकारी भेजी जा चुकी है। बहरहाल राजधानी के लगभग अधिकांश शासकीय विद्यालयों की यही स्थिति है। कई स्थानों पर शासन की ओर से मिलने वाली पुस्तकें भी अब तक वितरित नहीं की गई है। शिक्षा सत्र प्रारंभ होने के पखवाड़े भर बाद भी राजधानी के शासकीय विद्यालयों की बदहाली यह सोचने पर अवश्य मजबूर करती है कि ऐसी स्थिति में कैसे कोई पालक अपने बच्चों को शासकीय विद्यालयों में पढ़ाए जबकि प्रायवेट विद्यालयों के बढ़ते फीस ने भी पालकों को खासा परेशान किया है। अब यही आशा की जा रही है कि छात्रों के हित का ध्यान रख कर शासन विद्यालयों की स्थिति सुधारने के लिये जल्दी ही कोई निर्णय लेगी

समस्याओं का उद्योग दफ्तर


रायपुर,  13 जुलाई।  बेरोजगारों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने तथा उद्योगों के संवर्धन एवं सहायता करने वाला जिला व्यापार एवं उद्योग कार्यालय इन दिनों स्टाक की कमी सहित अन्य समस्याओं से जूस रहा है। कलेक्टोरेट परिसर में स्थित इस कार्यालय का भवन भी काफी जर्जर हो चुका है। यहां के अधिकारी कर्मचारी व प्रशिक्षण सहित अन्य कार्यों के लिये आने वाले लोगों को विभिन्न समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। इस कार्यालय द्वारा न  लघु एवं गृह उद्योगों का संवर्धन एवं प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है। स्वरोजगार के इच्छुक लोगों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। आंकड़ों से स्पष्ट है कि लोग समय-समय पर आयोजित होने वाले प्रशिक्षण शिविरों में उत्साह पूर्वक भाग लेते हैं। वित्तीय वर्ष में इन शिविरों के पश्चात रोजगार हेतु सहायता के लिये लगभग 100 प्रतिवेदन प्राप्त हुए जिनमें से 88 लोगों को इस कार्यालय द्वारा सहयता प्रदान की गई। जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र का कार्यालय खादी और ग्रामोद्योग आयोग एवं ग्रामोद्योग बोर्ड की योजना को क्रियान्वित करने का माध्यम है जिसके द्वारा युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराना मुख्य उद्देश्य है। इसके साथ ही बड़े उद्योगों को सहायता प्रदान करना आवश्यक छूट तथा अनुदान प्रदान करना मुख्य कार्य है। सूत्रों के अनुसार भारत सरकार से केंद्रीय खादी और ग्रामोद्योग आयोग एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के माध्यम से प्रत्येक वित्तीय वर्ष के मई माह तक योजनाएं जिला कार्यालय को प्राप्त हो जाती तथा वर्षभर  इसी के आधार पर कार्यालय अपने कार्यों को संचालित तथा योजना को क्रियान्वित करता है। इस वर्ष जुलाई माह का पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी केंद्र सककार से योजनाओं की जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है अत: अभी तक कार्यों के संचालन एवं क्रियान्वयन के संबंध में कोई कार्रवाई प्रारंभ नहीं की जा सकी है। योजनाओं के लिये सचिव स्तर पर केंद्र सरकार से चर्चा की जा रही है। अधिकारियों ने विश्वास जताया है कि इस माह के अंत तक केंद्र सरकार से स्वरोजगार तथा उद्योगों के संबंध में जानकारी प्राप्त हो जाएगी उसके बाद कार्यालय के कार्यों में गति आएगी। बहरहाल वर्तमान में जिला रोजगार एवं उद्योग केंद्र द्वारा गृह उद्योगों से संबंधित प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने पर विचार किया जा रहा है। रायपुर जिला व्यापार एवं उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक प्रवीण शुक्ला ने बताया कि वर्तमान में बड़े प्रोजेक्ट के लिये राजधानी के आसपास औद्योगिक क्षेत्रों में जमीन की तलाश की जा रही है। गृह एवं लघु उद्योगों के संबंध में लोगों को अधिकाधिक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए राजधानी के विभिन्न स्थानों पर प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने पर भी विचार किया जा रहा है। इन शिविरों में विभिन्न ऐसे उद्योगों को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है जिनमें लागत तथा श्रम कम तथा आय अधिक हो। दोनापत्तल, आचार बनाने सहित अन्य उद्योग हैं जिनके लिये किसी बड़े स्थान तथा अधिक लागत की भी आवश्यकता नहीं होती और इन वस्तुओं की बाजार में मांग अधिक होने के कारण लाभ की संभावना भी अधिक होती है। बड़े उद्योगों के लिये जमीन की तलाश को चुनौती बताते हुये महाप्रबंधक शुक्ला ने कहा कि पूंजी निवेश की दृष्टि से रायपुर प्रदेश में अग्रणी है। अधोसंरचना तथा श्रम शक्ति की उपलब्धता के चलते लोग यहां बड़े उद्योगों में निवेश करने में रूचि लेते हैं पर स्थान नहीं मिल पाना इसके लिये चुनौती है तिल्दा में 4000 करोड़ की लागत से बन रहे पावर थर्मल प्लांट को रायपुर जिला व्यापार एवं उद्योग  केंद्र की उपलब्धि बताते हुये महाप्रबंधक शुक्ल ने कहा कि स्वरोजगार चाहने वालों को सहायता तथा प्रोत्साहन इस कार्यालय की प्राथमिकता है पर यहां विभिन्न स्तरों पर सुविधाओं की कमी भी बनी हुई है जिसका निराकरण हो जाने पर इस कार्यालय द्वारा और भी अधिक लोगों तक शासन की योजनाओं का प्रसार तथा क्रियान्वयन किया जा सकेगा। बहरहाल भवन तथा स्टाफ की कमी से जूझते जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र का कार्यालय इन दिनों अपनी बदहाली की कहानी बयान कर रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि इस कार्यालय के लिये एक सुविधायुक्त भवन का निर्माण कराया जाए क्योंकि वर्तमान कार्यालय भवन जर्जर स्थिति में है।

गलती रविवि की, भुगत रहे छात्र


रायपुर, 18 जुलाई। पंडित रविशंकर विश्व विद्यालय में इन दिनों त्रुटि सुधार सहित अन्य कार्यों के लिये छात्रों की भारी भीड़ जमा हो रही है। इस वर्ष परीक्षा परिणाम में बड़ी संख्या में छात्र व पिता का नाम सहित अन्य जानकारियों में त्रुटि हो गई है जिसे सुधरवाने में छात्रों के पसीने छूट रहे हैं। परिसर में उपस्थित छात्रों ने बताया कि यहां पर इस संबंध में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है कि त्रुटि सुधार से संबंधित किस विभाग में होगा जिसके कारण छात्रं को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं अंकसूची तथा डिग्री सहित अन्य कागजातों में गलती के कारण कालेजों में प्रवेश भी नहीं मिल पा रहा है। वहीं भिलाई से आये एक छात्र ने बताया कि उसे परीक्षा में शामिल होने के बाद भी अंकसूची में एक विषय में अनुपस्थित बताकर अनुत्र्तीण घोषित कर दिया गया है जिसके लिये वह एक सप्ताह से विश्व विद्यालय के चक्कर काट रहा है। एक सप्ताह बाद कालेज से रिकार्ड मंगाकर देखने की बात कही गई थी ऐसा नहीं किया गया है। इससे उसे अन्य कालेज में दाखिला भी नहीं मिल पा रहा है। कमोबेश यही स्थिति रविवि परिसर में खड़े अधिकांश छात्रों की है। इसके साथ ही समय पर डिग्री मिलने की लगातार शिकायत सामने आ रही है। एक छात्र के 2007 में स्नातक उत्तीर्ण होने की डिग्री उसे अब तक प्राप्त नहीं हो सकी है वहीं इसे मानवीय भूल बताते हुये विश्व विद्यालय प्रशासन ठीक करा देने की बात कह रहा है तथा अधिकारियों द्वारा स्टाफ की कमी को भी इसका कारण बताया जा रहा है। बहरहाल बड़ी संख्या में अंकसूची तथा अन्य महत्वपूर्ण ,कागजातों में हुई त्रुटियों ने एक बार फिर रविशंकर विश्वविद्यालय की कार्य प्रणाली को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। अब यही अपेक्षा की जा रही है कि छात्र हित को ध्यान में रखते हुये प्राथमिकता के आधार पर त्रुटि सुधार के कार्य कराए जाये।

बिजली गुल होने से पुरानी बस्ती वासी परेशान


रायपुर, 8 जून। तपती गर्मी में बार-बार बिजली गुल होने से पुरानी बस्ती, लोहार चौक, सरस्वती चौक, प्रोफेसर कॉलोनी क्षेत्र की जनता बेहद परेशान हैं। ट्रांसफार्मर की कमी एवं उचित देख-रेख के अभाव में इन क्षेत्रों में दिन में कई बार बिजली गुल हो जाती है। क्षेत्रवासियों ने बताया कि इस संबंध में विद्युत मंडल को शिकायत करने पर अधिकारी जांच कराने की बात कहते हैं पर समस्या का स्थायी समाधान अब तक नहीं हो सका है। दो दिन पूर्व ही विद्युत वितरण कंपनी के द्वारा सेन्ट्रल कॉल सेन्टर की भी स्थापना की गयी है पर कंपनी द्वारा दिए गए नंबरों में फोन करने पर भी जनसमस्या का निवारण नहीं हो पा रहा है इसके साथ ही फील्ड में कार्य करने हेतु गैंग की कमी भी बनी हुई है। बहरहाल तपती गर्मी में बार-बार बिजली गुल होने से उक्त क्षेत्रवासियों का आक्रोश भी दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है।

महामाया मंदिर वार्ड में समस्याओं का अंबार


रायपुर, 8 जून। राजधानी के सर्वाधिक प्राचीन क्षेत्र पुरानी बस्ती के अंतर्गत महामाया मंदिर वार्ड इन दिनों सफाई, पानी सहित अन्य मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है। वार्ड में जगह-जगह कचरों का ढेर नजर आता है। सफार्ई कर्मियों एवं अधिकारियों की लापरवाही के चलते नाले और नालियों की नियमित सफाई भी नहीं हो पा रही है। वार्डवासियों ने बताया कि सफाई  के साथ ही जलापूर्ति की समस्या भी बनी हुई है वार्ड का ब्रम्हपुरी, ढीमर पारा, कुकरीपारा, गली नं.1,2,3 पानी की कमी से जूझ रहा है वहीं वार्ड के अधिकांश स्ट्रीट लाईटें भी वर्षों से वह पड़ी है। उन्होंने बताया कि इन समस्याओं के निराकरण के लिए कई बार स्थानीय पार्षद से शिकायत भी की जा चुकी है पर उनके द्वारा अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक मामला

  • खून-पसीने की कमाई डूबने के कगार पर
  • सवा पंद्रह करोड़ का भुगतान अब तक नहीं

रायपुर, 20 जून। 'जिंदगी भर रुपया-पैसा जोड़कर बेटी की शादी के लिए थोड़ा बहुत पैसा जमा किया था पर शायद किस्मत को हमारी खुशी मंजूर नहीं थी, वह पैसा भी बैंक घोटाले की भेंट चढ़ गया।Ó यह कहना है इंदिरा प्रियदर्शिनी सहकारी बैंक के खातेदार तथा पान की दुकान चलाने वाले राकेश सोनी का। बैंक घोटाले के लगभग 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी एक लाख से अधिक की राशि वाले खातेदारों के पैसों का भुगतान नहीं किया जा सका है और अब तो खातेदारों को अपना रकम  वापस मिलने की उम्मीद भी टूट चुकी है। घटना को याद करने पर आज भी इनकी आंखें नम हो जाती हैं यही स्थिति बैंक के लगभग सभी खातेदारों की है जिनमें किसी ने बेटी की शादी के लिए पैसा  जमा किया था तो किसी ने सेवानिवृत्त होने के बाद जीवनभर की जमा पूंजी से बेफिक्र होकर जीवन चलाने आएगा। बैंक में जमा कराया था। मुख्यमंत्री सहित तमाम जनप्रतिनिधियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों से आश्वासन मिलने के बावजूद राशि अब तक नहीं मिली है। समय बीतने के साथ ही मामला भी दब सा गया लगता है। 3 अगस्त 2006 को बैंक बंद होने के बाद केवल उन खातेदारों को जिनकी कुल जमा रकम एक लाख रुपये से कम थी उन्हें ही डिपाजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कार्पोरेशन मुम्बई से  13 करोड़ प्राप्त कर दिए गए हैं उसके बाद बचे खातेदारोौं की ओर अब तक किसी ने ध्यान नहीं दिया और न ही आरोपियोौं से बकाया राशि वसूली की जा सकी है। परिसामपक कार्यालय के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अब तक लगभग  14,69,27000 रुपये 1 लाख से कम जमा करने वाले खातेदारों को भुगतान किया जा चुका है। अभी भी उन खातेदारों को जिनकी जमा राशि 1 लाख से अधिक है उन्हें लगभग 15,21,888,90 रुपये का भुगतान किया जाना शेष है। इस मामले में पूर्व में गिरफ्तार आरोपियों जो वर्तमान में जमानत पर रिहा हैं से लगभग  21,09,000 रुपये की राशि वसूल की जानी है जिसे वसूला नहीं जा सका है। जब तक इनसे बकाया राशि  की वसूली नहीं की जाती खातेदारों का पैसा देना संभव नहीं है। इस मामले में न्यायालय के फैसले का भी इंतजार किया जा रहा है जिसके पूर्व यह नहीं कहा जा सकता कि खातेदारों को उनकी बकाया राशि मिल भी सकेगी या नहीं। वहीं ऐसे खातेदार जिन्होंने आज तक अपनी राशि प्राप्त नहीं की है उनके संबंध में कहना है कि इन खातेदारों के फर्जी होने की आशंका है। घटना के बाद गिरफ्तार आरोपियों का नार्कों टेस्ट भी कराया गया था पर उसकी रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई और न ही टेस्ट के अनुरुप कार्रवाई ही की गई। इस दौरान नार्को टेस्ट की सीडी तैयार होने तथा उस सीडी के तथाकथित सौदेबाजी का मामला भी प्रकाश में आया पर समय के साथ ही यह मामला भी दब गया। परिसमापक  के द्वारा इस मामले में 24/12/2009 को पंजीयक सहकारी संस्थाएं को पत्र लिखकर पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच हेतु शासन को प्रस्ताव भेजने की अपील की गई तथा इसी पत्र के आधार पर पंजीयक द्वारा दिनांक  4/2/2010 को सहकारिता विभाग के सचिव से मामला सीबीआई को सौंपने की मांग की गई पर अब तक मामला सीबीआई को नहीं सौंपा गया । इस दौरान आरोपियों को बचाने का आरोप भी राज्य सरकार पर लगता रहा जिससे सरकार की काफी किरकिरी भी हुई। गौरतलब है कि इस पूरे प्रकरण में कई बड़ें नामों के शामिल होने की आशंका है जिनके नाम सीबीआई  जांच के बाद सार्वजनिक होने पर प्रदेश की राजनीति  में भूचाल भी आ सकता है। शुरु से ही मामले को दबाने में लगी सरकार किसी भी तरह के जांच के पक्ष में नजर नहीं आती वहीं अधिकांश खातेदार भी अब किस्मत का खेल मानकर पैसा वापस मिलने की आस छोड़ चुके हैं तथा आज भी कुछ खातेदार रोते बिलखते हुए परिसमापक कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। बहरहाल 6 वर्ष बीतने के बाद भी इस मामले में ठोस कार्रवाई नहीं होने तथा पैसा नहीं मिलने से बैंक के खातेदारों में खासा आक्रोश व्याप्त है। मामले की सीबीआई  जांच हो :- इस मामले में लम्बे समय तक आंदोलन करने वाले इंदिरा बैंक नागरिक संघर्ष समिति के अध्यक्ष कन्हैया अग्रवाल का कहना है कि घोटाले के लगभग  6 वर्ष बीत जाने के बाद भई खातेदारों को अब तक पैसा नहीं मिला है। सरकार इ पूरे मामले को दबाना चाहती है शासन से जुड़े कई बड़े नाम इस घोटाले में शामिल हैं। वर्तमान में सभी आरोपी जमानत पर बाहर हैं। लोन लेकर पैसा खा जाने वाले आरोपियों से अब तक बकाया राशि की वसूली नहीं हो चुकी है। इससे स्पष्ट है कि सरकार आरोपियों को बचाना चाहती है। इस प्रकरण की सीबीआई जांच जरुर होनी चाहिए जिससे घोटाले के आरोपियों से बकाया राशि वसूल हो सके तथा उन्हें सजा हो और खातेदारों को उनके पैसे लौटाए जा सकें।

हाईटेक हो रहा है रविवि का ग्रंथालय


रायपुर, 22 जून। हालांकि बहुत सी किताबें महंगी तो होती हैं परंतु यह भी सत्य है कि किताबें न केवल ज्ञान का अपार भंडार होती हैं अंपितु सर्वश्रेष्ठ व ईमानदार मित्र भी होती हैं। महंगी किताबों को पाठकों तक आसानी से उपलब्ध करवाने में ग्रंथालयों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। प्रदेश में जहां एक ओर ग्रंथालयों की कमी हैं वहीं पं. रविशंकर शुक्ल विवि का ग्रंथागार प्रदेश और देश के उन चुनिंदा गंं्रथालयों में शामिल है जहां लगभग सभी विषयों से संबंधित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय लेखकों की किताबें पाठकों एवं विवि के छात्र-छात्राओं के लिए उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त यहां लगभग 22267 शोधपत्र तथा विश्व बैंक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 8749शोधपत्र उपलब्ध हंै। यह किसी भी अन्य विवि से कहीं अधिक है। सन् 1965 में चुनिंदा किताबों के साथ प्रारंभ इस ग्रंथालय में वर्तमान में 1,37,568 किताबें हैं जिनमें अधिकांश किताबें खरीदी हुई है। वहीं विभिन्न व्यक्तियों, संस्थाओं से उपहार के तौर पर मिली दुर्लभ किताबों को भी इस ग्रंथालय में संजोकर रखा गया है। यहां सभी विषयों की किताबें उपलब्ध हंै। जिन्हें ग्रंथालय के स्टॉफ के विशेष प्रयासों से संभालकर रखा गया है। एक विवि में पाठकों एवं छात्र-छात्राओं की आवश्यकता के अनुरूप जितनी भी किताबें होनी चाहिए इस ग्रंथागार में है जिनका अध्ययन यहां के 2635 पाठकगण करते हैं। इसमें विवि के छात्र-छात्राओं के अतिरिक्त शिक्षकगण, विवि स्टॉफ तथा अन्य महाविद्यालयों से आने वाले विद्यार्थी शामिल हैं। पाठकों की प्रतिदिन औसत संख्या पर गौर करें तो 400 पाठक यहां प्रतिदिन आते हैं जो कि प्रदेश के अन्य किसी भी ग्रंथालय से अधिक है। वर्तमान में रविशंकर विवि का यह ग्रंथागार विश्व बैंक से इंटरनेट के माध्यम से जुड़ा हुआ है जिससे विश्वस्तर के शोधपत्र तथा प्रख्यात लेखकों की किताबें पाठकों को आसानी से उपलब्ध हो रही हैं। इस प्रकार के ग्रंथागार भारत में केवल 19 हंै जिनमें रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय का यह ग्रंथागार भी शामिल है। किताबों तथा शोधपत्रों की खरीदी की प्रक्रिया भी ऑनलाइन संचालित की जाती है जिससे खरीदी सहित अन्य कार्यों में पारदर्शिता बनी रहती है। इसके साथ ही इंटरनेट पर आंकड़े तथा किताबों की सूची उपलब्ध होने पर पाठकों तक इसकी सूचना भी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। इस प्रकार यह ग्रंथागार सेमी कम्प्यूटरराईज्ड ग्रंथागार है। वर्तमान में इंटरनेट तथा कम्प्यूटर के बढ़ते महत्व को देखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्रों को टेबलेट कम्प्यूटर उपलब्ध कराने की दिशा में भी प्रयास जारी है जिससे यहां के विद्यार्थी न केवल विश्वविद्यालय के तमाम कार्यकलापों तथा गतिविधियों की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे बल्कि ग्रंथागार के पुस्तकों का ऑनलाइन अध्ययन भी कर सकेंगे। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्रों तथा पाठकों के लिए उपयोगी किताबों को आसानी से उपलक्ष्य कराना ही प्राथमिकता है इसी आधार पर ऑक्सफोर्ड, वाइली, कैम्ब्रिज तथा स्प्रिंगर की ऑनलाइन किताबें यहां उपलब्ध हैं जो प्रदेश के किसी अन्य स्थान पर नहीं है इसे विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी उपलब्धि भी मानता है। पाठक विश्वस्तर के किताबों तथा शोधपत्रों का अधिक से अधिक अध्ययन कर सकें, सभी विषयों पर आवश्यक पाठ्य सामाग्री उपलब्ध हो सके इसे ध्यान में रखकर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा 7500 से अधिक शोधपत्रों की ऑनलाइन खरीदी तथा 65 विदेशी शोधपत्रों की खरीदी यू.जी.सी. के माध्यम से की गई। इसमें लगभग 23 लाख की राशि का व्यय किया गया है। इस तरह के शोधपत्रों से पाठकों तथा शोधार्थियों को विश्वस्तर पर होने वाले तमाम शोध तथा अनुसंधानों की समुचित जानकारी आसानी से उपलब्ध हो रही है। विश्वविद्यालय में काफी पुराने तथा उपयोगी शोधपत्र भी उपलब्ध है जिन्हें अब खराब हो जाने के भय से छात्रों को नहीं दिया जाता है। ऐसे शोधपत्रों को संरक्षित करने तथा पाठकों को सरलता से उपलब्ध कराने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा एक हाइटैक स्कैनर की खरीदी की प्रक्रिया भी की जा रही है जिससे जल्दी ही सभी शोधपत्रों को हार्ड कॉपी के रूप में संरक्षित कर इंटरनेट से जोड़ दिया जायेगा जिससे पाठक आसानी से इस दुर्लभ तथा उपयोगी शोधपत्रों का अध्ययन कर पायेंगे। इस तरह विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा आने वाले समय में इस ग्रंथालय को और भी अधिक विकसित करने तथा छात्रों एवं पाठकों हेतु सुलभ बनाने की दिशा में सतत प्रयास किये जा रहे हैं। इसे देखते  हुए यू.जी.सी. द्वारा कराए गए सर्वे में भारत के 150 विश्वविद्यालयों में रविवि को 60 वां रैंक प्रदान किया गया है जिसे सुविधाओं के लिहाज से संतोष माना जा सकता है। यह ग्रंथालय काफी पुराना है भवन एवं यहां रखे फर्नीचर भी पुराने है जिससे कभी-कभी छात्रों को असुविधा होती है इसे ध्यान में रखते हुए इसे और भी विकसित तथा सुविधायुक्त बनाने के लिए निरंतर प्रयास जारी है। ग्रंथागार में आने वाले छात्रों एवं पाठकों के द्वारा इस गं्रथालय के संबंध में पूछे जाने पर वे बताते हैं कि यहां लगभग सभी विषयों पर उपयोगी किताबें तथा शोधपत्र उपलब्ध हैं जिससे अध्ययन में मदद मिलती है तथा कहीं और किताबों के लिए भटकने की आवश्यकता नहीं होती। बहरहाल विश्वविद्यालय द्वारा छात्रों के हित में ग्रंथालय को अधिक विस्तृत तथा सुलभ बनाने और महंगी किताबों को आसानी से पाठकों व छात्रों के लिए उपलब्ध कराने का प्रयास सराहनीय माना जा रहा है। अब विश्वविद्यालय प्रशासन से यही अपेक्षा की जा रही है कि आने वाले समय में इसे और भी अधिक विकसित स्वरूप प्रदान किया जाये जिससे यह ग्रंथालय राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सके और पाठकों के लिए निरंतर सार्थक एवं उपयोगी पाठ्य सामाग्री उपलब्ध कराता रहे।

खून चूस रहे पैथालॉजी लैब

  • लागत से ज्यादा शुल्क की वसूली

 रायपुर, 25 जून। राजधानी के कई पैथालॉजी लैब संचालक खून जांच के नाम पर मरीजों का खून चूस रहे हैं। वे रोगियों की जेब में डाका डाल रहे हैं। रक्त,मूत्र, वीर्य, थूक की जांच में आने वाले खर्च (मुनाफा जोड़कर) से बहुत ज्यादा राशि शुल्क के नाम से वसूली जाती है। मरीजों से की जा रही लूट की ओर शासन-प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा है जबकि विभिन्न जांच के लिए स्वास्थ्य विभाग का दर तय कर देना चाहिए। राजधानी में पैथालॉजी लैब के नाम पर बड़ा कारोबार चल रहा है। चौंकाने वाला तथ्य तो यह है कि भारी भरकम शुल्क देने के बाद भी जांच रिपोर्ट  के सही होने का दावा नहीं किया जा सकता। एक ही दिन अलग-अलग लैब  में जांच कराने से रिपोर्ट भी अलग-अलग आती है। दुर्भाग्यजनक तो यह है कि उपचार करने वाले चिकित्सक जिस लैब में जांच कराने कहते हैं वहीं जांच कराना अनिवार्य है वरना चिकित्सक अन्य लैब की जांच रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं होगा। पूरे मामले में कमीशन का बड़ा खेल चल रहा है। चिकित्सकों को लैब संचालक उनका हिस्सा पहुंचाते हैं। इसका भार मरीजों की जेब पर आता है। इसी वजह से जांच शुल्क महंगा हो गया है। कई बार तो चिकित्सक बिना वजह खून, मूत्र आदि की जांच करवा देते हैं। एक समय था जब चिकित्सक लक्षण देखकर व नाड़ी की गति से बीमारी का पता लगा लेते थे। जांच रिपोर्ट देखकर तो बीमारी के बारे में कोई भी बता सकता है। पैथालॉजी लैबों में जांच शुल्क से आम आदमी परेशान हो गया है। यही हाल एक्सरे, एमआईआर, सोनोग्राफी व एंडोस्कोपी सेंटरों का भी है। मूत्र की साधारण जांच के लिए पैथालॉजी लैब में 80 से 100 रुपये फीस ली जाती है जबकि जांच का वास्तविक खर्चा (लागत) 10 से 20 रुपए ही आता है। लागत के अतिरिक्त लैब का खर्च मशीनों का खर्च और कर्मचारियों के वेतन इसमें शामिल हैं। इसमें सबसे बड़ी राशि डॉक्टरों को मरीज भेजने के बदले दी जाने वाली राशि कमीशन भी है। इन सबके कारण टेस्ट की कीमत कई गुना बढ़ जाती है। यही स्थिति सोनोग्राफी और एक्सरे करने वाले स्थानों पर भी है एक सामान्य एक्सरे करने का खर्च 50 रुपये से 100 रुपये तक होता है जबकि इसके लिए 200 रुपये से 500 तक की राशि ली जाती है। वहीं सोनोग्राफी  करने में 100 रुपये से 200 रुपये तक खर्च होता है जबकि इसके लिए 300 से 700 रुपये तक की राशि ली जाती है। यह कीमत उन पैथालॉजी लैब अथवा सोनोग्राफी सेन्टरों की है जो स्वतंत्र रुप से संचालित है अगर किसी नर्सिंग होम या बड़े और तथाकथित सर्वसुविधायुक्त अस्पतालों में संचालित पैथालॉजी लैबों या एक्सरे, सोनोग्राफी सेंटरों की बात करें तो वहां ये शुल्क और भी अधिक है। कई  नर्सिंग होमों पर डॉक्टरों द्वारा ही पैथालॉजी लैब खोल लिया गया है और मरीज के ऐसे नर्सिंग होमों में जाने पर वहीं से जांच कराना आवश्यक है। डॉक्टरों द्वारा पैथालॉजी लैब खोले जाने का दुष्परिणाम यह है कि आवश्यकता नहीं होने पर भई मरीजों को डॉक्टरों द्वारा टेस्ट करवाने कह दिया जाता है। ये टेस्ट मरीजों को डॉक्टर के क्निलिक में स्थित लैब या उसके बताये हुए स्थानों से कराना पड़ता है। अगर ऐसा नहीं किया गया मरीजों द्वारा अन्य स्थान से कराए गए टेस्ट रिपोर्ट को ही मानने से डॉक्टरों द्वारा इंकार कर दिया जाता है। फीस निर्धारण की कोई व्यवस्था नहीं है जिसके कारण लैब संचालकों द्वारा मनमानी वसूली की जा रही है। मरीज गाहे-बगाहे ठगी के शिकार हो रहे हैं। गौरतलब है कि कई पैथालॉजी लैबों द्वारा दो के साथ एक फ्री की तर्ज पर पैकेज सिस्टम में जनरल हॉल बॉडी टेस्ट किये जा रहे हैं। अधिक टेस्ट कराने पर डिस्काऊंट  भी दिया जाने लगा है। वहीं कई ऐसे भी पैथालॉजी लैब नगर में संचालित है जो निर्धारित प्रक्रिया को पूर्ण किए बगैर ही खोल लिए गए हैं तथा कई स्थानों पर अनुभवी लैब टैक्निशियनों का भी अभाव है जिससे गलत रिपोर्ट बनाने का मामला भी कई बार प्रकाश में आता रहता है। इस प्रकार पैथालॉजी लैब संचालकों की मनमानी का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। इसका सबसे अधिक प्रभाव आर्थिक रुप से कमजोर मरीजों पर पड़ रहा है जो भारी भरकम राशि देकर टेस्ट करा नहीं सकते बगैर टेस्ट के इलाज संभव नहीं है। शासकीय अस्पतालों में जाने पर कभी टेस्ट की सुविधा उपलब्ध नहीं होती तो कभी डॉक्टरों तथा स्टॉफ  की लापरवाही के चलते गलत रिपोर्ट आ जाती है। इसके अतिरिक्त शासकीय अस्पतालों में कराए गए टेस्ट रिपोर्ट को भी डॉक्टरों द्वारा मानने से इंकार कर दिया जाता है। कुल मिलाकर डॉक्टरों तथा पैथालॉजी लैब संचालकों के गठबंधन से संचालित इस गोरखधंधे का खामियाजा गरीब तथा मध्यमवर्गीय लोगों को भुगतना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में शासन और प्रशासन से यही अपेक्षा की जा सकती है कि यथाशीघ्र इस मामले को संज्ञान में लेकर आम लोगों को लूटने वाले पैथालॉजी लैब तथा एक्सरे, सोनोग्राफी केन्द्रों के संचालकों के खिलाफ जांचकर ठोस कार्रवाई करें।  कुछ महत्वपूर्ण टेस्ट में होने वाला खर्च  और पैथालॉजी द्वारा ली जाने वाली राशि:     वास्तविक टेस्ट     खर्च     लेते हैं मलेरिया     15 रु.     40 रु. सिकलीन     20 रु.     100 रु. प्रेग्नेंसी     12 रु.     80-100 रु. ब्लड शुगर     15 रु.     40 रु. हिमोग्लोबीन     10 रु.    30 रु. एचआईवी     50 रु.     250-300 रु. पीलिया     40 रु.    100 रु. मूत्र जांच     10 रु.     60 रु.

खून चूस रहे पैथालॉजी लैब

  • लागत से ज्यादा शुल्क की वसूली

 रायपुर, 25 जून। राजधानी के कई पैथालॉजी लैब संचालक खून जांच के नाम पर मरीजों का खून चूस रहे हैं। वे रोगियों की जेब में डाका डाल रहे हैं। रक्त,मूत्र, वीर्य, थूक की जांच में आने वाले खर्च (मुनाफा जोड़कर) से बहुत ज्यादा राशि शुल्क के नाम से वसूली जाती है। मरीजों से की जा रही लूट की ओर शासन-प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा है जबकि विभिन्न जांच के लिए स्वास्थ्य विभाग का दर तय कर देना चाहिए। राजधानी में पैथालॉजी लैब के नाम पर बड़ा कारोबार चल रहा है। चौंकाने वाला तथ्य तो यह है कि भारी भरकम शुल्क देने के बाद भी जांच रिपोर्ट  के सही होने का दावा नहीं किया जा सकता। एक ही दिन अलग-अलग लैब  में जांच कराने से रिपोर्ट भी अलग-अलग आती है। दुर्भाग्यजनक तो यह है कि उपचार करने वाले चिकित्सक जिस लैब में जांच कराने कहते हैं वहीं जांच कराना अनिवार्य है वरना चिकित्सक अन्य लैब की जांच रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं होगा। पूरे मामले में कमीशन का बड़ा खेल चल रहा है। चिकित्सकों को लैब संचालक उनका हिस्सा पहुंचाते हैं। इसका भार मरीजों की जेब पर आता है। इसी वजह से जांच शुल्क महंगा हो गया है। कई बार तो चिकित्सक बिना वजह खून, मूत्र आदि की जांच करवा देते हैं। एक समय था जब चिकित्सक लक्षण देखकर व नाड़ी की गति से बीमारी का पता लगा लेते थे। जांच रिपोर्ट देखकर तो बीमारी के बारे में कोई भी बता सकता है। पैथालॉजी लैबों में जांच शुल्क से आम आदमी परेशान हो गया है। यही हाल एक्सरे, एमआईआर, सोनोग्राफी व एंडोस्कोपी सेंटरों का भी है। मूत्र की साधारण जांच के लिए पैथालॉजी लैब में 80 से 100 रुपये फीस ली जाती है जबकि जांच का वास्तविक खर्चा (लागत) 10 से 20 रुपए ही आता है। लागत के अतिरिक्त लैब का खर्च मशीनों का खर्च और कर्मचारियों के वेतन इसमें शामिल हैं। इसमें सबसे बड़ी राशि डॉक्टरों को मरीज भेजने के बदले दी जाने वाली राशि कमीशन भी है। इन सबके कारण टेस्ट की कीमत कई गुना बढ़ जाती है। यही स्थिति सोनोग्राफी और एक्सरे करने वाले स्थानों पर भी है एक सामान्य एक्सरे करने का खर्च 50 रुपये से 100 रुपये तक होता है जबकि इसके लिए 200 रुपये से 500 तक की राशि ली जाती है। वहीं सोनोग्राफी  करने में 100 रुपये से 200 रुपये तक खर्च होता है जबकि इसके लिए 300 से 700 रुपये तक की राशि ली जाती है। यह कीमत उन पैथालॉजी लैब अथवा सोनोग्राफी सेन्टरों की है जो स्वतंत्र रुप से संचालित है अगर किसी नर्सिंग होम या बड़े और तथाकथित सर्वसुविधायुक्त अस्पतालों में संचालित पैथालॉजी लैबों या एक्सरे, सोनोग्राफी सेंटरों की बात करें तो वहां ये शुल्क और भी अधिक है। कई  नर्सिंग होमों पर डॉक्टरों द्वारा ही पैथालॉजी लैब खोल लिया गया है और मरीज के ऐसे नर्सिंग होमों में जाने पर वहीं से जांच कराना आवश्यक है। डॉक्टरों द्वारा पैथालॉजी लैब खोले जाने का दुष्परिणाम यह है कि आवश्यकता नहीं होने पर भई मरीजों को डॉक्टरों द्वारा टेस्ट करवाने कह दिया जाता है। ये टेस्ट मरीजों को डॉक्टर के क्निलिक में स्थित लैब या उसके बताये हुए स्थानों से कराना पड़ता है। अगर ऐसा नहीं किया गया मरीजों द्वारा अन्य स्थान से कराए गए टेस्ट रिपोर्ट को ही मानने से डॉक्टरों द्वारा इंकार कर दिया जाता है। फीस निर्धारण की कोई व्यवस्था नहीं है जिसके कारण लैब संचालकों द्वारा मनमानी वसूली की जा रही है। मरीज गाहे-बगाहे ठगी के शिकार हो रहे हैं। गौरतलब है कि कई पैथालॉजी लैबों द्वारा दो के साथ एक फ्री की तर्ज पर पैकेज सिस्टम में जनरल हॉल बॉडी टेस्ट किये जा रहे हैं। अधिक टेस्ट कराने पर डिस्काऊंट  भी दिया जाने लगा है। वहीं कई ऐसे भी पैथालॉजी लैब नगर में संचालित है जो निर्धारित प्रक्रिया को पूर्ण किए बगैर ही खोल लिए गए हैं तथा कई स्थानों पर अनुभवी लैब टैक्निशियनों का भी अभाव है जिससे गलत रिपोर्ट बनाने का मामला भी कई बार प्रकाश में आता रहता है। इस प्रकार पैथालॉजी लैब संचालकों की मनमानी का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। इसका सबसे अधिक प्रभाव आर्थिक रुप से कमजोर मरीजों पर पड़ रहा है जो भारी भरकम राशि देकर टेस्ट करा नहीं सकते बगैर टेस्ट के इलाज संभव नहीं है। शासकीय अस्पतालों में जाने पर कभी टेस्ट की सुविधा उपलब्ध नहीं होती तो कभी डॉक्टरों तथा स्टॉफ  की लापरवाही के चलते गलत रिपोर्ट आ जाती है। इसके अतिरिक्त शासकीय अस्पतालों में कराए गए टेस्ट रिपोर्ट को भी डॉक्टरों द्वारा मानने से इंकार कर दिया जाता है। कुल मिलाकर डॉक्टरों तथा पैथालॉजी लैब संचालकों के गठबंधन से संचालित इस गोरखधंधे का खामियाजा गरीब तथा मध्यमवर्गीय लोगों को भुगतना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में शासन और प्रशासन से यही अपेक्षा की जा सकती है कि यथाशीघ्र इस मामले को संज्ञान में लेकर आम लोगों को लूटने वाले पैथालॉजी लैब तथा एक्सरे, सोनोग्राफी केन्द्रों के संचालकों के खिलाफ जांचकर ठोस कार्रवाई करें।  कुछ महत्वपूर्ण टेस्ट में होने वाला खर्च  और पैथालॉजी द्वारा ली जाने वाली राशि:     वास्तविक टेस्ट     खर्च     लेते हैं मलेरिया     15 रु.     40 रु. सिकलीन     20 रु.     100 रु. प्रेग्नेंसी     12 रु.     80-100 रु. ब्लड शुगर     15 रु.     40 रु. हिमोग्लोबीन     10 रु.    30 रु. एचआईवी     50 रु.     250-300 रु. पीलिया     40 रु.    100 रु. मूत्र जांच     10 रु.     60 रु.

नंदनवन में बंगाल टाइगर अगस्त में


रायपुर, 29 जून। चिडिय़ाघर नंदनवन में इन दिनों बंगाल टाइगर और हिमालयन भालू को लाने की तैयारियां की जा रही है। अगस्त के प्रथम सप्ताह में नंदनवन की टीम बंगाल टाइगर और हिमालयन भालू को लेने कोलकाता व गुवाहाटी रवाना होगी इसके साथ ही राजस्थान से 2 जोड़ी घडिय़ाल तथा ग्वालियर से मादा नीलगाय लाने का भी प्रयास जारी है। वर्ष 1979 में नंदनवन की स्थापना रायपुर शहर से 6 किमी दूर खारून नदी के किनारे लगभग 22 एकड़ जमीन पर ग्राम पंचायत हथबंध विकासखंड धरसीवां में एक नर्सरी के उद्देश्य से की गई थी जहां बाद में वनों से घायल एवं भटके हुए वन्यप्राणियों को लाकर रखा जाने लगा राज्य गठन के पश्चात वन्यप्राणियों की अच्छी देखरेख एवं चिडिय़ाघर के निर्माण को ध्यान में रखकर विकास कार्य तेजी से कराया गया। आठ वर्ष बाद 2008 में सतत् परिश्रम के परिणाम स्वरूप नंदनवन को मिनी जू की मान्यता केंद्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण नई दिल्ली एवं भारत सरकार से प्राप्त हुई। 50 एकड़ के क्षेत्रफल में फैले नंदनवन में कुल 200 से अधिक वन्य प्राणी तथा पक्षी रखे गए हैं। जल्दी ही इससे लगी लगभग 8 एकड़ भूमि के हस्तांतरण का कार्य भी कर लिया जाएगा जिसमें स्नेक पार्क बनाया जाएगा। शेरों तथा अगस्त माह में आने वाले बंगाल टाइगर के लिए बड़े पिंजरे बनाने की योजना है। वर्तमान में नंदनवन में आने वाले पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए एक बैटरी चलित वाहन की खरीदी भी की गई है जिसकी लागत लगभग 8.50 लाख रुपए बताई जा रही है। इस वाहन में 11 पर्यटकों के एक साथ बैठकर घुमने की सुविधा है इसके लिए पर्यटकों को 20 रुपए प्रति व्यक्ति शुल्क देना होगा। इस वाहन द्वारा नंदनवन के लगभग सभी क्षेत्रों का भ्रमण किया जा सकता है। 50 एकड़ में फैले इस परिसर को घूमने के लिए प्रदान की जा रही इस सुविधा को लोग काफी पसंद कर रहे हैं। वन्यप्राणियों के चिकित्सकीय सुविधा का ध्यान रखने तथा आवश्यकता पडऩे पर कहीं लाने ले जाने अथवा किसी अन्य स्थान से जानवर पकडऩे के लिए एक रेसक्यू वाहन की भी व्यवस्था नंदनवन प्रशासन द्वारा की गई है। वन परिक्षेत्र अधिकारी डी.एन. वर्मा ने बताया कि यह एक सुविधायुक्त वाहन है जिसमें ऑटोमेटिक लिफ्ट के माध्यम से अंदर लगे पिंजरे को जमीन में उतारकर बड़ी आसानी से जानवरों को इसमें चढ़ाया या उतारा जा सकता है। इसके अतिरिक्त वाहनों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में भी यह वाहन उपयोगी है इस वाहन में डॉक्टरों की एक प्रशिक्षित टीम भी उपस्थित रहती है जो प्राणियों के स्वास्थ्य व सुरक्षा का ध्यान रखती है। चिडिय़ाघर प्रशासन से मिले निर्देश के बाद जानवरों की संख्या और नंदनवन के क्षेत्रफल को बढ़ाने की दिशा में लगातार प्रयास जारी है अभी कुछ ही दिन पहले नंदनवन में ग्वालियर जू से आठ मगरमच्छ लाए गए हैं। इसी तरह काले हिरणों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है। अगस्त माह में बंगाल टाइगर, हिमालयन भालू, नीलगाय गोह, तथा चौसिंगा जैसे वन्यप्राणियों के आने के बाद इसमें और भी अधिक वृद्धि हो जाएगी। क्षेत्रफल की दृष्टि से नंदनवन को विकसित करने के लिए आसपास के जमीनों के अधिग्रहण का प्रस्ताव है 8 एकड़ भूमि का अधिग्रहण शीघ्र हो जाने की संभावना है। समय के साथ नंदनवन में आने वाले पर्यटकों की संख्या में भी वृद्धि हुई है वर्ष 2011-12 के आंकड़ों पर गौर करें तो 3,86,746 पर्यटक यहां आए। इस संख्या में अगस्त माह में नये जानवरों के आने के बाद और भी वृद्धि होने की संभावना है।

महीने भर की आय 500 रुपए

  • महंत घासीदास संग्रहालय
  • एक रुपए में भी नहीं आ रहे दर्शक

रायपुर, 1 जुलाई। महंत घासीदास संग्रहालय दर्शकों व पर्यटकों के लिए तरस गया है। व्यापक प्रचार प्रसार के अभाव में इस पुरातात्विक धरोहर ने सन्नाटे को अपना साथी बना लिया है। आंकड़े बोलते हैं कि प्रवेश शुल्क प्रति व्यक्ति मात्र एक रुपए होने के बाद भी दिनभर में बमुश्किल दस से पन्द्रह दर्शक ही यहां आते हैं। यानी पूरे महीने यहां से सरकार को केवल 500 रुपए की आय होती है जबकि यह संग्रहालय राजधानी के मध्य में स्थित है। जहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। देश के दूसरे राज्यों में भी इसी स्तर के संग्रहालय हैं जिसे देखने पर्यटकों को भारी भरकम शुल्क अदाकर कतार लगानी पड़ती है। आखिर क्या वजह है कि महंत घासीदास संग्रहालय का आकर्षण नहीं बढ़ पाया है जबकि यह संग्रहालय छत्तीसगढ़ की संस्कृति को जानने शानदार व पुख्ता माध्यम है। विदेशी या देशी पर्यटकों की बात तो दूर प्रदेश के ही लोगों को इस संग्रहालय के बारे में जानकारी नहीं है। राजधानी के अधिकांश लोग इससे अंजान हंै। सौभाग्य की बात यह है कि बृजमोहन अग्रवाल के पर्यटन मंत्री बनने के बाद इस संग्रहालय को जीवन दान मिला। इस भवन का कायाकल्प किया गया। फिर भी व्यापक प्रचार प्रसार की कमी अभी भी बरकरार है। सबसे बड़ी चूक तो यह है कि संग्रहालय के मुख्य प्रवेश द्वार में ही संग्रहालय के संबंध में कोई जानकारी का उल्लेख नहीं है। बाहर लगे बोर्ड में केवल संचालनालय संस्कृति विभाग ही लिखा हुआ है इसमें संग्रहालय का कोई उल्लेख नहीं होने से भी लोगों को यह पता नहीं चल पाता है कि यहां संग्रहालय भी है। इसके अतिरिक्त प्रागैतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व की सामग्रियों के यहां होने से केवल इस विषय में रुचि रखने वाले पर्यटक एवं शोधार्थी ही आते हैं अगर इसे और अधिक रुचिकर स्वरूप प्रदान किया जाए तो पर्यटकों की संख्या में निश्चित ही वृद्धि होगी। इस बात को स्वीकारते हुए यहां के अधिकारियों का कहना है कि भविष्य में इसके लिए प्रयास किया जाएगा। वर्तमान में प्रदेश के कई स्थानों में शोध कार्य किए जा रहे हंै जिसमें काफी ऐतिहासिक सामग्रियों के प्राप्त होने की उम्मीद है जिससे पर्यटकों को आने वाले समय में बहुत सी नई चीजें देखने को मिलेंगी। संग्रहालय के रखरखाव के संबंध में अधिकारियों एवं  गाईड ने बताया कि मौसम एवं तापमान के अनुसार यहां विशेषज्ञों की टीम समय-समय पर सभी वस्तुओं में केमिकल का छिड़काव करती है जिससे सभी वस्तुएं सुरक्षित रहती है। केमिकल डालने की अवधि कभी 6 महीने की होती हे तो कभी 2-3 माह में ही डालना पड़ता है। विशेषज्ञों की टीम लगातार संग्रहालय का देखरेख करती है। मई माह में इस संग्रहालय परिसर में एक प्रशिक्षण शिविर का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है जिसमें बाहर से कलाकारों तथा अन्य प्रदेश के विशेषज्ञों द्वारा स्थानीय कलाकारों तथा विद्यार्थियों को विभिन्न कलाकृतियों के संबंध में जानकारी मिलती है और प्रशिक्षण भी दिया जाता है। महंत सर्वेश्वरदास ग्रंथालय जिसका संचालन संग्रहालय परिसर से ही किया जाता है वर्तमान में शहीद स्मारक भवन में स्थापित है यह इंटरनेट से जुड़े होने के कारण ई-ग्रंथालय है यहां इतिहास पुरातत्व सहित अन्य महत्वपूर्ण विषयों से संबंधित किताबें है। संग्रहालय सदैव कौतुहल एवं आकर्षण का केन्द्र रहे हैं और जब बात पुरातात्विक धरोहरों की हो तो आकर्षण और भी बढ़ जाता है। रायपुर महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय पुरातात्विक धरोहरों को अपने में समेटे यह न केवल छत्तीसगढ़ वरन् मध्यप्रदेश का भी सर्वाधिक प्राचीन संग्रहालय है। छत्तीसगढ़ एवं महाकोशल अंचल की पुरातात्विक धरोहरों को सुरक्षित रखकर पीढिय़ों के ज्ञानवर्धन एवं मार्गदर्शन हेतु राजनांदगांव रियासत के तत्कालीन शासक महंत घासीदास द्वारा ब्रिटिश शासनकाल में एक अष्टकोणीय संग्रहालय का निर्माण कराया गया तथा यहां पुरातात्विक धरोहरों को संग्रहित किया जाने लगा। वर्तमान में यह स्थान 'महाकौशलÓ कला वीथिका के रुप में जाना जाता है। कालान्तर में संग्रहालय भवन छोटा पडऩे लगा तथा एक बड़े संग्रहालय भवन की आवश्यकता महसूस की गयी जिसके फलस्वरुप वर्तमान संग्रहालय भवन का निर्माण 1953 में संपन्न हुआ। इस भवन का लोकार्पण भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने किया। इसके निर्माण में महंत घासीदास की स्मृति में रानी ज्योति देवी ने एक लाख पचास हजार रुपये का दान दिया जिसके पश्चात् यह संग्रहालय भवन तथा सार्वजनिक संग्रहालय में 4324 गैर पुरावशेष तथा 12955 पुरावशेष सामग्रियां संग्रहित हैं। इस उत्तराभिमुख संग्रहालय के भूतल में तीन दीर्घायें हैं। पहले दीर्घा में एक काऊंटर है जहां केयर टेकर बैठता है। यहां से ही विभागीय प्रकाशनों एवं मूर्तियों का विक्रय होता है यहां चुने हुए चांदी तथा तांबे के सिक्के और राजपूत कलचुरीकालीन व मुगल बादशाहों के सिक्के आदि प्रदर्शित हैं। इसके साथ ही विभिन्न कालों से संबंधित छायाचित्रों को भी इसी दीर्घा  में संग्रहित किया गया है। दूसरे दीर्घा  में आदिमानव द्वारा प्रयुक्त पाषाण अ, तांबे के औजार, 1870 में बालाघाट के गुंगेटिया से प्राप्त कुल्हाड़ी तथा सब्बल रखे गए हैं। इसी दीर्घा में सिरपुर से उत्खनन में प्राप्त मूर्तियां, हाथी, घोड़ा, बैल, भैंस, हिरण  आदि की आकृतियां तथा मिट्टी के बर्तन भी प्रदर्शित हैं। यहां मिट्टी की मुहरें भी हैं इनमें वाराणसी के राजा घनदेव की मुहर ब्राम्हीलिपि में है जिसमें उनका नाम उत्कीर्ण हैं यह अतिमहत्वपूर्ण मानी जाती है। उत्खनन से प्राप्त लोहे के तराजू, फूंकनी, कैंची, चिमटी , संडसी आदि घरेलू सामान भी यहां प्रदर्शित हैं। कल्चुरी प्रतिमा दीर्घा में नायिकाओं एवं वास्तुखंड़ों को प्रदर्शित किया गया है। प्राचीन पाषाण  प्रतिमाओं में रतनपुर की चतुर्भुजी स्थानक विष्णु प्रतिमा, जैन अम्बिका देवी हैं वहीं सिरपुर से प्राप्त प्रतिमाएं रुद्री (धमतरी) से प्राप्त रुपेश्वर की प्रतिमा है। शिव, नटराज, अन्तरशायी विष्णु, जैन सर्वतोभदिका, सहस्त्र जिन चैत्यालय की अतिमहत्वपूर्ण कलाकृतियां भी यहां प्रदर्शित है। इस संग्रहालय में छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों से प्राप्त प्राचीन अभिलेख, दानपत्र, ताम्रपत्र, लेख और प्रशस्ति पत्र का भी बेहतरीन संग्रह है। शरभपुरी, सोमवंशीय, त्रिपुरी, शाखा के कलचुरी राजाओं के ताम्रपत्र तथा राजा महाशिवगुप्त का ताम्रपत्र लेख तथा प्रशस्ति पत्र का भी संग्रहालय के अभिलेख दीर्घा में महत्वपूर्ण स्थान है। इसी दीर्घा में बिलासपुर जिले के किरारी गांव के हीराबांधा तालाब से प्राप्त दूसरी शताब्दी का एकमात्र दुर्लभ काष्ठ स्तंभ लेख प्रदर्शित है जो संपूर्ण भारत में अपनी तरह का एकमात्र लेख है। प्रथम तल का प्रकृति इतिहास दीर्घा जीव जन्तुओं तथा पक्षियों के कारण बेहद लोकप्रिय है। यहां विविध प्रकार के पशु, पक्षी, सर्प आदि प्रदर्शित है। पक्षियों में करीब करीब 100 भारतीय पक्षियों की किस्में है जिनमें कौवा, मोर, मैना, तोता, बगुला, नीलकंठ आदि तथा मृत जीव जन्तु की ममी यहां रखी गई है। जानवरों में चीता, भालू, जंगली सुअर, लोमड़ी, हिरण आदि प्रदर्शित हैं। मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक होने के कारण यह दीर्घा इस संग्रहालय में बेहद लोकप्रिय है विद्यार्थी  तथा बच्चे तो जैसे इस दीर्घा में आने के बाद प्रकृति के इतिहास में खो जाते हैं। संग्रहालय के सबसे ऊपरी तल में जनजातियों से संबंधित वस्तुएं संग्रहित हैं। जनजाति दीर्घा में माडिय़ा, गोंड, कोरकू, उरांव और बंजारा जनजातियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले कपड़े, गहने, भांडे, अ, वाद्य एवं अन्य वस्तुएं प्रदर्शित है। इसके अतिरिक्त धनुष-बाण, चिडिय़ा मारने वाले गुलेलों आदि को भी संग्रहित किया गया है। यहां छत्तीसगढ़ की संस्कृति के जीवंत दर्शन होते हैं। इतिहास, प्रकृति, संस्कृति के लिहाज से यह संग्रहालय अत्यंत महत्वपूर्ण है। जहां जाकर ऐसा प्रतीत होता है मानों आदिमानवों या राजा-महाराजाओं के युग में आ गए हो पर वर्तमान में प्रदेश का सर्वाधिक प्राचीन संग्रहालय शासन-प्रशासन के साथ-साथ पर्यटकों की भी उपेक्षा का शिकार है प्रांगण में लगी प्राचीन मूर्तियां टूटती जा रही हैं वही उद्यानों तथा इस परिसर के विभिन्न स्थानों पर लगी कलाकृतियां भी जर्जर अवस्था में है जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। संस्कृति विभाग का कार्यालय इसी परिसर में स्थित है पर अधिकारियों की उदासीनता के चलते प्राचीन वस्तुएं नष्ट होती जा रही हैं इस ओर कभी किसी का ध्यान नहीं जाता। मूर्तियों को खुले में रखने तथा उचित देख-रेख के अभाव में चोरी होने तथा टूटने का भय हमेशा बना रहता है। इसके संबंध में अधिकारियों से बात करने पर जल्दी ही इस पर कांच लगवाने की बात कह रहे हैं। कहने को यहां ई-ग्रंथालय की स्थापना भी की गई है पर अपडेट न करने के कारण इस संग्रहालय तथा ग्रंथालय से संबंधित जानकारी नहीं मिल पाती है। कभी कभार ही किसी स्कूल अथवा कॉलेज की टीम शैक्षणिक भ्रमण हेतु आती है अत: यहां के अधिकारी तथा कर्मचारी  भी इसके रखरखाव के प्रति उदासीनता बरतते हैं। वर्तमान में आवश्यकता इस बात की है कि शासन-प्रशासन द्वारा इस संग्रहालय को और भी अधिक रुचिकर बनाया जाए तथा प्राचीन मूर्तियों के रखरखाव के संबंध में उचित कार्रवाई  करते हुए बाहर रखी मूर्तियों को संरक्षित एवं सुरक्षित किया जाये। जनता को भी इसके संबंध में अधिकाधिक जानकारी उपलब्ध कराकर इस प्राचीन धरोहरों से युक्त संग्रहालय से अवगत कराने की आवश्यकता है।

कालीबाड़ी अस्पताल की स्थिति दयनीय


रायपुर, 4 जुलाई। राजधानी के कालीबाड़ी स्थित जिला क्षय एवं टी.बी. चिकित्सालय में इन दिनों अव्यवस्था का आलम है। एकमात्र टी.बी. अस्पताल होने के कारण यहां मरीजों की भीड़ लगी रहती है। कभी डॉक्टर नहीं मिलते हैं तो कभी लोगों को यथोचित दवाइयां ही नहीं मिल पाती है। आसपास की झुग्गी बस्तियों से ही यहां इलाज करवाने मरीज आते हैं जो आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं होते की कहीं अन्य स्थान पर जाकर अपना इलाज करा सकें। ऐसी स्थिति में यहां फैली अव्यवस्था से लोगों को खासी परेशानी होती है। अस्पताल में अपना ईलाज कराने आए मरीजों ने बताया कि यहां डॉक्टरों की कमी के अतिरिक्त दवाओं की भी कमी बनी हुई है। डॉक्टर बाहर से दवा खरीदने कहते हैं जो गरीब मरीजों के लिए संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त यहां मरीजों को भर्ती करने के लिए बनाए गए कक्ष की भी दयनीय स्थिति है। लगभग सभी बिस्तर टूटे-फूटे तथा जर्जर हालत में है। बारिश के दिनों में छत से पानी टपकता है। बिस्तरों पर चादर नहीं है। अगर किसी मरीज को भर्ती होना पड़े तो उसे इन सभी अव्यवस्थाओं से जूझना पड़ेगा है। अस्पताल में सुविधाओं की कमी की बात को स्वीकारते हुए यहां के अधिकारी एवं कर्मचारियों ने बताया कि इस संबंध में कई बार शासन को पत्र लिखकर इस चिकित्सालय की हालात को दुरूस्त करने की अपील की जा चुकी है पर अब तक हालात जस की तस है। इस अस्पताल की बेहतरी  के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। सबसे दयनीय स्थिति तो मरीजों को जिस कक्ष में उपचार हेतु भर्ती किया जाता है वहां है। बारिश के दिनों में इस कक्ष के अधिकांश हिस्से में पानी टपकता है जिससे यहां खड़ा होना भी मुश्किल होता है। बहरहाल इस चिकित्सालय के रखरखाव पर अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो मरीजों को और भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है? अत: प्रशासन को तत्काल इस ओर ध्यान देकर इसकी हालात को दुरूस्त किया जाना चाहिए।

स्टैंड की पार्किंग में अव्यवस्था


रायपुर, 6 जुलाई। राजधानी के रेलवे स्टेशन में वाहनों की पार्किंग के लिए स्थान की कमी है। स्टैंड चलाने वाले ठेकेदार की मनमानी और गुंडागर्दी से यात्री इन दिनों बेहद परेशान हैं। आटो और रिक्शे वालों द्वारा अनाधिकृत रुप से अपने वाहन परिसर के अंदर ही खड़े कर दिये जाते हैं ऐसी स्थिति में बाइक सवारों के लिए वाहन खड़े करने  का स्थान नहीं होता। सबसे अधिक परेशान तो वे होते हैं जो अपने किसी परिजन को छोडऩे या लेने आए होते हैं। उन्हें न तो परिसर में गाड़ी पार्क करने दिया जाता है और न ही कम समय के लिए स्टैंड वाले गाड़ी रखने देते हैं। ट्रैफिक पुलिस द्वारा भी दुवर््यवहार की खबरें मिलती ही रहती है। इस दौरान स्टैंड के ठेकेदार द्वारा रखे गए लड़के अन्य स्थानों में खड़े वाहनों को भी स्टैंड में लाकर रख देते हैं और पैसा मांगते हैं। पैसे न देने पर लड़कों द्वारा यात्रियों और उनके परिजनों से बदसलूकी की जाती है। कई बार स्टेशन परिसर में हाथापाई की स्थिति भी निर्मित हो जाती है। स्टेशन को वर्तमान में सुंदर और सुविधाजनक बनाने का प्रयास रेलवे प्रशासन द्वारा किया जा रहा है पर वाहनों की पार्किंग की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इससे आम जनता को विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ट्रैफिक पुलिस की उदासीनता तथा देखरेख की कमी से स्टैंड के ठेकेदार तथा कर्मचारियों के हौसले बुलंद हैं।

सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम 2 अक्टूबर से


रायपुर, 7 जुलाई। राजधानी में नगर निगम की बहुप्रतीक्षित सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम के अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से प्रारंभ होने की संभावना है। इसके लिए निगम प्रशासन की ओर से तैयारियां तेज कर दी गई है। उम्मीद है कि गांधी जयंती अर्थात् 2 अक्टूबर से इसकी शुरूआत की जा सकती है। कार्य प्रारंभ होने के एक वर्ष के भीतर ही एमओयू के अनुसार कंपनी को फिल्टर प्लांट और ट्रेचिंग ग्राऊंड बनाना होगा। निगम प्रशासन प्रारंभिक चरण में इसे राजधानी के सघन व्यावसायिक क्षेत्रों में लागू करने की योजना बना रहा है इसके लिए जल्दी ही सदर बाजार, बूढ़ापारा जैसे क्षेत्रों को चिन्हित करने की बात भी की जा रही है। कंपनी द्वारा भी इस दिशा में प्रारंभिक तैयारियां तेज कर दी गई है। प्रत्येक घरों में वितरित करने के लिए डस्टबीन खरीदे जाने की प्रक्रिया को इस समय अंतिम रूप दिया जा रहा है। बहुत जल्द शहर में कचरों को घरों तथा विभिन्न स्थानों से उठाने के लिए रिक्शे तथा हाइटेक वाहनों की खरीदी भी कर ली जाएगी। कंपनी द्वारा रहवासी क्षेत्रों तथा कॉलोनियों में दो शिफ्टों में कार्य कराया जाएगा जिससे उम्मीद की जा रही है कि नगर के प्रमुख मार्गों में दिखाई देने वाले कचरे के ढेर अब नजर नहीं आएंगे। वहीं बाहर बाहर कचरा डालने वालों पर कठोर जुर्माना भी लगाया जाएगा। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम को नगर निगम शहर की सफाई व्यवस्था के लिए ब्रम्हास्त्र मान कर चल रही है। अब देखना यह होगा कि कंपनी नगर की जनता और नगर निगम प्रशासन की उम्मीदों पर खरा उतर पाती है या शहर की सफाई व्यवस्था की स्थिति और भी बिगड़ जाएगी। क्योंकि अब तक निगम ने जितनी बार भी व्यवस्था को सुधारने की कोशिश की बिगड़ती ही चली गई। बहरहाल अब सारी उम्मीदें सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम पर ही टिकी है।

कान फोड़ रहा है डीजे व ढोल का शोर


रायपुर, 6 जुलाई। राजधानी रायपुर की जनता इन दिनों डीजे की तेज आवाज से बेहद परेशान हैं। शादी विवाह और जुलूस जलसे के दौरान बजने वाले डीजे के कानफोडू़ शोर ने लोगों का जीन मुश्किल कर दिया है। एक डीजे में तकरीबन 30 पोंगे तथा बड़े साउंड बाक्स लगे होते हैं जिससे 1000 से 10000 डेसिबल तक का शोर उत्पन्न होता है जो न केवल लोगों को चिड़चिड़ा बना रहा है बल्कि इससे बहरेपन का खतरा भी बढ़ गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी देर रात तक शहर के मुख्य मार्गों पर डीजे की तेज आवाज के साथ निकलने वाले जुलूस जलसों पर भी किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की जा रही है जिससे डीजे वालों के हौसले बुलंद हैं। इस तरह के ध्वनि प्रदूषण से सबसे बड़ा कुप्रभाव गर्भवती महिलाओं, शुगर और हार्ट के मरीजों, बुजुर्ग, नवजात शिशुओं व स्कूली बच्चों पर पड़ रहा है। गर्भवती महिलाओं को जहां इससे गर्भपात होने का खतरा होता है वहीं हार्ट के मरीजों को इस शोर से हार्ट अटैक आ सकता है। पार्टियों व बारात में 10-15 ढोल के साथ ही डीजेसिस्टम प्रदूषण के ग्राफ को बढ़ा रहा है। नाक, कान, गला विशेषज्ञ डॉ. अनुज जाऊलकर के अनुसार आजकल डीजे की तेज आवाज से लोगों में चिड़चिड़ा होने, सरदर्द तथा कम सुनने जैसी बीमारियां देखी जा रही है। इससे लोगों को हार्ट अटैक आ सकता है और यह शोर कभी-कभी जानलेवा हो सकता है। बच्चों को विशेष रूप से इस शोर से बचाने की आवश्यकता है क्योंकि बच्चों के अंग बेहद संवेदनशील होते हैं। तेज शोर से उनके सुनने की क्षमता हमेशा के लिए खत्म हो सकती है। राजधानी के प्रख्यात नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ डॉ. जाऊलकर के अनुसार तेजी से आवाज कान के परदे से टकराने पर बहरे होने अथवा श्रवण शक्ति कम होने का खतरा बना होता है। इसी तरह अचानक अगर कोई नवजात शिशु डीजे या पटाखों के शोर के संपर्क में आ जाए तो उसकी श्रवणशक्ति जाने की आशंका एक वयस्क की तुलना में अधिक होती है। हार्ट तथा शुगर के मरीजों को भी डीजे तथा पटाखों के शोर से खतरा होता है। अचानक इन आवाजों के संपर्क में आने से कई बार रक्तचाप बढ़ जाता है और हार्ट अटैक आने की आशंका होती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 10 डेसिबल तक ही डीजे और पटाखों में छूट है पर प्राय: 120 से 200 डेसिबल तक पटाखे फोड़े फोड़े जा रहे हैं वहीं 300 से 1000 डेसीबल तक डीजे की आवाज होती है। डीजे के साथ वाहनों में लगे पे्रशर हार्न से भी लोग खासे परेशान हैं। युवा वर्ग की पसंद बन चुके इस हार्न में कई तरह की डरावनी आवाजें निकलती है। जानवरों के भौंकने, किसी लड़की के चीखने जैसी और भी कई तरह की आवाजों वाले प्रेशर हार्न राजधानी के बाजार में बिक रहे हैं। इसमें सायरन वाले हार्न युवाओं में लोकप्रिय हैं इस तरह के हार्न से कई बार पुलिस भी चौंक जाती है और इसी का फायदा अपराधिक किस्म के लोग भी उठाने लगे हैं। पुलिस तथा प्रशासन की उदासीनता के चलते ऐसे वाहन चालकों पर कार्यवाही नहीं की जाती जिससे कई बार अप्रिय स्थिति का सामना भी लोगों को करना पड़ता है। ऐसे प्रेशर हार्न के खिलाफ अभियान चलाकर कार्यवाही करने की बात भी प्रशासन करता है पर शहरों की सड़कों पर बेखौफ घूमते वाहन प्रशासन के दावो की पोल खोलता नजर आता है। तेज रफ्तार वाहन खतरनाक प्रेशर हार्न का प्रयोग करते सरपट सड़क पर दौड़ते है इससे अगल बगल से गुजर रहे लोग किसी दुर्घटना की आशंका से ही सहम जाते हैं। बहरहाल शादी विवाह तथा जुलूस जलसों में प्रयोग होने वाले डीजे और स्पीकर पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है इसके अतिरिक्त वाहनों में लगे प्रेशर हार्नों को भी तत्काल बंद कराने की व्यवस्था की जानी चाहिए। डॉ. अनुज जाऊलकर ने बताया कि वे इस संबंध में कई बार प्रशासनिक अधिकारियों से मिलकर इस पर रोक लगाने की मांग भी कर चुके हंै पर प्रतिबंध लगाना तो दूर डीजे वालों पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं की गई हैं। यही कारण है कि बेखौफ होकर देर रात तक लोग डीजे के कान फोड़ू शोर के साथ ध्वनि प्रदूषण करते घूम रहे हंै। इस पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। पुलिस अधिकारियों से इस संबंध में बात करने पर उन्होंने बताया कि जब भी इस तरह की शिकायत आती है तो अवश्य कार्यवाही की जाती है। इसके साथ ही समय समय पर अभियान चलाकर देर रात शोर शराबा करने वाले लोगों और डीजे व्यावसायी पर भी कार्यवाही की जाती है। नगर के वरिष्ठ अधिवक्ता व्ही.के. शुक्ला ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार रात 10 बजे के बाद तरह से डीजे या स्पीकर का प्रयोग नहीं किया जा सकता है अगर कहीं पर दिन में भी इस तरह डीजे तथा स्पीकर के तेज आवाज से लोगों को परेशानी हो रही है तो वे नजदीकी थाने में एफआईआर दर्ज करा सकते हैं। अगर थाना के द्वारा कार्यवाही नहीं की जा रही हो तो एसपी सहित अन्य उच्चाधिकारियों को भी सूचित किया जा सकता है। जिससे इसे तत्काल बंद कराकर दोषियों पर कार्यवाही की जा सके। बहरहाल डीजे के कानफोड़ू शोर से परेशान जनता अब इस पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में है। अब शासन और प्रशासन से यही अपेक्षा है कि तत्काल नगर के डीजे व्यावसायियों को निर्धारित 10 से 20 डेसिबल तक ही आवाज रखने का निर्देश दे और जो ऐसा नहीं करते उन पर तत्काल पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। इसके साथ ही वाहनों पर लगे प्रेशर हार्न पर भी प्रतिबंध लगाने की मांग होने लगी है।

सप्रे स्कूल मैदान बनेगा मिनी स्टेडियम


रायपुर, 8 जुलाई। नगर निगम प्रशासन सप्रे स्कूल के मैदान को मिनी स्टेडियम के रुप में विकसित करने की योजना बना रहा है। कुछ ही दिनों पूर्व निगम कमिश्नर की टीम ने स्थल का मुआयना भी किया था और अब इस संबंध में आगे की कार्रवाई के लिए अधिकारियों को निर्देशित भी किया जा चुका है । इस वर्ष के अंत में 100 वर्ष पूर्ण कर रहा यह मैदान अब केवल खेल के लिए ही प्रयोग किया जा सकेगा। विगत दिनों इस मैदान में प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए 20 पोल तथा हाईमास्ट लाइट भी लगाये जा चुके हैं। अब मैदान में चारों तरफ घास  तथा पौधे लगाने और दर्शकों के बैठने के लिए बनाए गए सीढ़ीनुमा स्थान पर चेयर लगाने की भी तैयारी की जा रही है। खेल मैदानों की कमी तथा अव्यवस्था के बीच सप्रे स्कूल को मिनी स्टेडियम के रुप में विकसित करने की योजना से खिलाडिय़ों में खासा उत्साह है। इस मैदान में प्रतिदिन तकरीबन 200 खिलाड़ी आते हैं। सुविधाओं की कमी के कारण उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है पर अब निगम की इस योजना से न केवल खिलाड़ी बल्कि क्षेत्र के लोग भी उत्साहित हैं। विदित हो कि इसी वर्ष के अंत में माधव राव सप्रे विद्यालय अपना 100 वां वर्षगांठ मनाने जा रहा है। स्कूल और इस मैदान से अनेक महत्वपूर्ण प्रसंग जुड़े हुए हैं यह मैदान देश के प्रख्यात राजनीतिज्ञों की सभाओं का गवाह रहा है पर कुछ वर्षों से मैदानों को केवल खेल के लिए प्रयोग करने की योजना के तहत यहां राजनैतिक आयोजनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। नगर निगम से जुड़े सूत्रों के अनुसार अगले कुछ माह के भीतर घास लगाने सहित अन्य कार्य संपन्न हो जाने की उम्मीद की जा रही है।

सप्रे स्कूल मैदान बनेगा मिनी स्टेडियम


रायपुर, 8 जुलाई। नगर निगम प्रशासन सप्रे स्कूल के मैदान को मिनी स्टेडियम के रुप में विकसित करने की योजना बना रहा है। कुछ ही दिनों पूर्व निगम कमिश्नर की टीम ने स्थल का मुआयना भी किया था और अब इस संबंध में आगे की कार्रवाई के लिए अधिकारियों को निर्देशित भी किया जा चुका है । इस वर्ष के अंत में 100 वर्ष पूर्ण कर रहा यह मैदान अब केवल खेल के लिए ही प्रयोग किया जा सकेगा। विगत दिनों इस मैदान में प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए 20 पोल तथा हाईमास्ट लाइट भी लगाये जा चुके हैं। अब मैदान में चारों तरफ घास  तथा पौधे लगाने और दर्शकों के बैठने के लिए बनाए गए सीढ़ीनुमा स्थान पर चेयर लगाने की भी तैयारी की जा रही है। खेल मैदानों की कमी तथा अव्यवस्था के बीच सप्रे स्कूल को मिनी स्टेडियम के रुप में विकसित करने की योजना से खिलाडिय़ों में खासा उत्साह है। इस मैदान में प्रतिदिन तकरीबन 200 खिलाड़ी आते हैं। सुविधाओं की कमी के कारण उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है पर अब निगम की इस योजना से न केवल खिलाड़ी बल्कि क्षेत्र के लोग भी उत्साहित हैं। विदित हो कि इसी वर्ष के अंत में माधव राव सप्रे विद्यालय अपना 100 वां वर्षगांठ मनाने जा रहा है। स्कूल और इस मैदान से अनेक महत्वपूर्ण प्रसंग जुड़े हुए हैं यह मैदान देश के प्रख्यात राजनीतिज्ञों की सभाओं का गवाह रहा है पर कुछ वर्षों से मैदानों को केवल खेल के लिए प्रयोग करने की योजना के तहत यहां राजनैतिक आयोजनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। नगर निगम से जुड़े सूत्रों के अनुसार अगले कुछ माह के भीतर घास लगाने सहित अन्य कार्य संपन्न हो जाने की उम्मीद की जा रही है।

सेवा में बदलाव के साथ तत्काल की बुकिंग शुरू


रायपुर, 10 जुलाई। दलालों पर अंकुश लगाने के लिए रेल्वे ने आज से तत्काल टिकिट की सेवा में बदलाव कर दिया है। जिसके तहत अब तत्काल टिकटों की बुकिंग प्राथमिकता के आधार पर की जायेगी इसके लिए प्रात: 9.30 से 10 बजे तक फार्म स्वीकार कर प्रात: 10 बजे से 10.30 बजे तक ही टोकन दिया जायेगा अर्थात् तत्काल टिकट लेने वाले लोगों को प्राथमिकता के आधार पर आधे घंटे टिकटों का वितरण किया जायेगा उसके बाद रिजर्वेशन काऊन्टर सामान्य आरक्षण के लिए खोल दिया जायेगा। रेल्वे प्रशासन का मानना है कि इससे तत्काल टिकटों के लिए आने वाले यात्रियों को सुविधा होगी वहीं यात्रियों को दलालों से छुटकारा भी मिलेगा। रेल्वे प्रशासन द्वारा यह भी प्रयास किया जा रहा है कि ई-टिकट के लिए भी एक निश्चित समय का निर्धारिण कर किया जाए जिससे तत्काल टिकटों की बुकिंग प्रारंभ होने के बाद कुछ ही देर में टिकट खत्म होने की समस्या से भी छुटकारा मिल सके। विदित हो कि कुछ ही दिनों पूर्व दलालों पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल टिकटों के लिए भरे गए फार्म में उल्लेखित नाम एवं नंबर को जांचने की कार्यवाही भी प्रारंभ की गई है जिससे फर्जी नाम एवं पहचान पत्र से टिकट की बुकिंग कराने वाले लोगों को पकड़ा जा सके। इसके बाद तत्काल टिकटों के लिए निश्चित समय का निर्धारण कर रेल्वे प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि अब दलालों पर पूर्णत: अंकुश लगाया जाएगा तथा तत्काल टिकटों की बुकिंग में पारदर्शिता बरती जाएगी। रेल्वे के मुख्य आरक्षण पर्यवेक्षक से मिली जानकारी के अनुसार अगर सीटें उपलब्ध रहीं तो निर्धारित समय के बाद भी लोग तत्काल टिकटों को बुकिंग करा सकेंगे पर तत्काल टिकट की बुकिंग के लिए निर्धारित समय पर केवल तत्काल वालों को ही प्राथमिकता दी जायेगी उसके बाद ही रिजर्वेशन काऊन्टर को सामान्य रिजर्वेशन के लिए खोला जाएगा। अधिकारियों ने यात्रियों से अपील करते हुए कहा कि अगर यात्री तत्काल में अपना टिकट बुक करना चाहते हैं तो वे निर्धारित समय पर ही काऊन्टर में आएं इससे यात्रियों को भी सुविधा होगी तथा रेल्वे प्रशासन भी बुकिंग का कार्य सुव्यवस्थित ढंग से कर सकेगा। बहरहाल दलालों पर अंकुश लगाने तथा टिकटों की तत्काल बुकिंग में यात्रियों की सुविधा के लिए लगातार रेल्वे प्रशासन द्वारा की जा रही कार्यवाही से यात्रियों में उम्मीद की एक नई किरण दिखाई दे रही है अब देखना यह है कि रेल्वे द्वारा किया जा रहा यह प्रयास कितना कारगर होता है और लोगों को दलालों से छुटकारा मिलता भी है या नहीं।


अनहोनी को दावत देते ओवरलोड स्कूली वाहन

रायपुर, 10 जुलाई। नए शिक्षा सत्र के प्रारंभ होने के बाद इन दिनों निर्धारित संख्या से अधिक बच्चों को अपने वाहनों में बैठाए ऑटो तथा रिक्शे वाले राजधानी की सड़कों पर बेखौफ चल रहे हैं। वाहन शुल्क के नाम पर पालकों से मुंहमांगी कीमत वसूलने के बाद भी बच्चों की जान जोखिम में डालकर ऑटो अथवा रिक्शों में घर से स्कूल तथा स्कूल से घर लाये ले जाये जा रहे हैं। विद्यालय प्रशासन और वाहन चालकों की मनमानी का आलम यह है कि एक ऑटो में 15-17 बच्चे बैठा लेते हैं जबकि एक ऑटो में बमुश्किल 10 लोगों को ही बैठाया जा सकता है। ओवरलोड वाहन चलाना व केवल यातायात नियमों के खिलाफ है बल्कि ऐसा करना बच्चों के लिए बेहद खतरनाक भी है। इन मामलों में पुलिस की उदासीनता भी समझ से परे है। पुलिस द्वारा ओवरलोड स्कूली वाहनों पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की जा रही है इससे वाहन चालकों के साथ ही विद्यालय प्रशासन के भी हौसले बुलंद हैं। विदित हो कि अधिकांश स्कूलों द्वारा विद्यार्थियों को लाने ले जाने के लिए स्कूल बस की सुविधा प्रदान की जाती है। ऐसी स्थिति में स्कूल प्रशासन की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह छात्र-छात्राओं को सुरक्षित परिवहन की व्यवस्था सुनिश्चित करें। पर ओवरलोड वाहनों को देखकर स्पष्ट है कि स्कूल प्रशासन भी बच्चों की सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं है। इधर ट्रैफिक पुलिस तथा आरटीओ हमेशा इस मामले में चेकिंग के नाम पर खानापूर्ति करते हैं। किसी भी तरह की सख्त कार्यवाई न वाहनचालकों पर की जाती है और न ही वाहनों को चलवाने वाले स्कूल प्रबंधन के खिलाफ। इसका परिणाम ऑटो पलटने तथा दुर्घटना के रूप में कई मामले सामने आ चुके हैं। पर न तो इससे वाहन चालकों और न ही स्कूल प्रशासन ने सबक लिया और न पुलिस प्रशासन और आरटीओ ने। हैरत की बात तो यह है कि बच्चों को स्कूल लाने ले जाने वाली अधिकांश गाडिय़ों के कागजातों का नवीनीकरण तथा वाहनों की चेकिंग भी नहीं कराई जाती जबकि आरटीओ के गाइडलाइन के अनुसार समय समय पर वाहनों का रखरखाव किया जाना अनिवार्य है। शहर में कई अनफिट तथा बिना नंबर वाले वाहनों को भी आसानी से देखा जा सकता है। इन सबके बाद भी पुलिस तथा आरटीओ की खामोशी समझ से परे है। ऐसे भी कई वाहन चालक हैं जिसके पास न तो लायसेंस हैं और न अन्य आवश्यक कागजात। और तो और विद्यालयों द्वारा इनसे अनुभव प्रमाण पत्र भी नहीं लिया जाता है जिससे कई ऐसे व्यक्ति भी वाहन चलाते देखे जा सकते हैं जो इस योग्य नहीं हैं। इससे लगातार अनहोनी की आशंका बनी रहती है। मामले का एक पहलू यह भी है कि पालकों द्वारा भी यह नहीं देखा जाता है कि जिस वाहन से उनका बच्चा स्कूल जा रहा है वह किस स्थिति में है या उसमें सवार बच्चों की संख्या कितनी है। पालकों द्वारा मुंहमांगी फीस अदा करने के बाद भी उनके खामोश रहने से भी स्कूल प्रशासन तथा वाहन चालकों को बल मिलता है। बहरहाल मोटी राशि फीस के रूप में वसूलने वाले विद्यालय प्रशासन द्वारा मासूमों की जान को जोखिम में डालकर पैसा कमाया जा रहा है। मासूमों की थोड़ी सी भी चिंता स्कूल प्रशासन को नहीं है। पुलिस तथा आरटीओ भी मूकदर्शक बने तमाशा देख रहे हैं जबकि इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने गाइडलाइन जारी किया है पर इसकी भी अनदेखी कर मासूमों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है। शासन और प्रशासन की खामोशी भी शायद किसी अनहोनी का इंतजार कर रही है। आवश्यकता इस बात की है कि मासूमों के जीवन से जुड़े इस मामले पर तत्काल ठोस निर्णय लेकर कार्यवाही की जाए। 
सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन- >     स्पष्ट रूप से वाहन पर स्कूल का नाम और गाड़ी नंबर हो। >    बस सहित अन्य बड़े वाहनों में ड्राइवर के साथ क्लीनर का होना अनिवार्य है। >    फस्र्ट एड बॉक्स रखना अनिवार्य है। >    निर्धारित सीट संख्या से अधिक बच्चे न बैठाए जाएं। >    वाहन में अग्निशामक यंत्र लगा हो। >    बसों में स्पीड गवर्नर लगा हो। >    बसों सहित अन्य बड़े वाहनों में दो गेट और खिड़की लगा होना अनिवार्य है। >    अटेंडर का होना अनिवार्य है। >    फिटनेस साटिर्फिकेट का समय समय पर नवीनीकरण अनिवार्य है।

विदेशी मिसकॉल से मोबाईल उपभोक्ता परेशान


रायपुर, 10 जुलाई। मोबाईल उपभोक्ता इन दिनों विदेशी मिसकॉल से बेहद परेशान हैं। मिसकॉल आने पर जब उसी नंबर पर फोन लगाया जाता है तो पता चलता है कि ये नंबर भारत का नहीं हंै। इससे मोबाइल का बैलेंस भी खत्म हो जाता है। नंबरों को जांचने पर पता चलता है कि कई बार ये नंबर भारत के होते हैं पर कई बार प्लस 12 अर्थात् पाकिस्तान से भी कॉल आता है जिसे रिसीव करने पर कोई बात नहीं होती पर मोबाईल का बैलेंस जरूर कट जाता है। मोबाईल कंपनियों को इसकी सूचना देने पर अंतरर्राष्ट्रीय कॉल की गई है इसलिए बैलेंस कटा है कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। इससे मोबाईल उपभोक्ता जहां परेशान हैं वहीं मोबाईल कंपनियोंं द्वारा मामले से पल्ला झाडऩे पर आक्रोशित भी है। आइडिया कंपनी का मोबाईल उपयोग करने वाले उपभोक्ता गिरीश दुबे ने बताया कि दो दिन से लगातार उन्हें एक ही नंबर से कभी रात में तो कभी फर्जी सुबह मिसकॉल आ रहा था जब उन्होंने उस नंबर पर फोन किया तो उन्हें पता चला कि यह विदेश का नंबर है। इस नंबर पर कॉल करने के बाद उपभोक्ता के मोबाईल से 97 रुपए काट लिया गया। कंपनी में फोन करने पर उन्हें यह कह दिया गया कि चूंकि अंतर्राष्ट्रीय कॉल लगाया गया है इसलिए बैलेंस कटा है। इसी तरह एक अन्य उपभोक्ता ने बताया कि उन्हें प्लस 12  अर्थात् पाकिस्तान के नंबर से कॉल आ रहा था पर उन्होंने इसे रिसीव नहीं किया पर जब इसकी सूचना कंपनी को देने के लिए कॉल किया तो उनके द्वारा मामले से पल्ला झाड़ लिया गया। बहरहाल राजधानी के उपभोक्ता इस तरह के नंबरों से आ रहे मिसकॉल से इन दिनों बेहद परेशान हैं। मोबाईल कपंनियों के मामले में उदासीनता ने उपभोक्ताओं की परेशानी को और बढ़ा दिया है। अब आवश्यकता इस बात की है कि तत्काल मामले की गंभीरता को समझते हुए नंबरों की जांच कर उचित कार्यवाही की जाए। पाकिस्तान से फोन आने की सूचना से मामला और भी गंभीर तथा संदिग्ध नजर आ रहा है इससे जहां उपभोक्ता परेशान हैं वहीं मोबाईल कंपनियां भी पल्ला झाड़ रहीं हैं। अत: तत्काल इस संबंध में कार्यवाही की जानी चाहिए।

सामान्य कार्डधारियों को नहीं मिल रहा राशन


रायपुर, 10 जुलाई। राजधानी के शासकीय राशन दुकानों में सामान्य राशन कार्डधारियों को राशन नहीं मिलने से लोग परेशान हैं। 7 तारीख को चावल  उत्सव होने के बाद भी राशन दुकानों से लोगों को राशन नहीं मिल पा रहा है। बाद में आने या राशन उपलब्ध नहीं होने की बात कहकर कार्डधारियों को लौटा दिया जाता है। गरीबी रेखा कार्डधारियों को कम मात्रा में ही सही राशन तो मिल रहा है पर सामान्य राशन कार्डधारियों को निर्धारित राशन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। जबकि राशन दुकान संचालकों के द्वारा राशन प्राप्त किया जा रहा है पर वह राशन जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा है इसलिये इस मामले में भारी भ्रष्टाचार की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता । कई स्थानों पर राशन दुकान संचालकों द्वारा फर्जी राशन कार्ड बनवाकर राशन की हेराफेरी का मामला भी प्रकाश में आया है। फर्जी कार्ड के आधार पर राशन की कालाबाजारी की जा रही है उसके बाद उन्हें किराना व्यावसायियों के माध्यम से महंगे दामों में बाजार में बेचा जा रहा है। इस प्रकार राशन जरूरतमंदों को न मिलकर कालाबाजारियों के कब्जे में जा रहा है। कुछ मामलों में जनप्रतिनिधियों तथा अधिकारियों के राशन दुकान संचालकों से मिले होने की बात भी सामने आ रही है जिससे बड़े स्तर पर घोटाले की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। सत्तीबाजार में स्थित राशन दुकान में राशन लेने आये एक सामान्य कार्डधारी ने बताया कि दो माह से उसे निर्धारित राशन नहीं मिल सका है। हर बार दुकान संचालक दुकान में राशन नहीं होने की बात कहता है जबकि राशन उपलब्ध है. इसी तरह मठपारा के राशन दुकान में राशन लेने आये व्यक्ति ने बताया कि यहां हमेशा चावल ही उपलब्ध होता है चांवल के अतिरिक्त अन्य कोई सामान नहीं मिल पाता है। यह स्थिति कमोबेश शहर के सभी राशन दुकानों की है क्योंकि बहुत से कार्डधारी ऐसे हैं जो कार्ड के आधार पर राशन नहीं लेते हैं जबकि राशन दुकान संचालकों को उन कार्डों के आधार पर ही राशन मिलता है ऐसी स्थिति में स्पष्ट है कि राशन के नाम पर बड़ा खेल चल रहा है। मिट्टी तेल के लिये तो कार्डधारियों को दर-दर भटकना पड़ रहा है वह बी उस स्थिति में जब अधिकांश घरों में एलपीजी उपलब्ध है। राशन के इस व्यापार में कुछ बड़े लोगों के शामिल होने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि बड़े लोगों के सहयोग के बिना राशन के मामले में भ्रष्टाचार असंभव है। इस पूरे मामले में शासन प्रशासन मूकदर्शक की भूमिका में है कई स्थानों पर लगातार शिकायत मिलने के बाद भी राशन दुकान चलाने वालों पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जा रही है। जबकि राशन दुकान संचालकों द्वारा की जाने वाली गड़बड़ी को देखते हुये इनके लायसेंस रद्द किये जाने का नियम है। इसके बाद भी इस तरह की कार्रवाई नहीं की जा रही है। वहीं इस मामले पर संबंधित अधिकारियों से पूछने पर उन्होंने कहा कि अगर किसी दुकानदार के खिलाफ शिकायत मिलती है तो उस पर तत्काल उचित कार्रवाई की जायेगी। बहरहाल बढ़ती महंगाई में उचित मूल्य की दुकानों से राशन नहीं मिलने से आम जनता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। प्रशासक की उदासीनता से राशन दुकान संचालकों के हौसले बुलंद है। अब यही उम्मीद की जा सकती है कि जनता की परेशानियों को ध्यान में रख कर प्रशासन तत्काल इस मामले पर ठोस कार्रवाई की जायेगी।

40 हजार पंजीयन, नौकरी 40 को

सफेद हाथी साबित हो रहा रोजेगार कार्यालय

रायपुर, 11 जुलाई। राजधानी के पंडरी स्थित जिला रोजगार एवं स्वरोजगार मार्गदर्शन कें द्र अर्थात् रोजगार कार्यालय में इन दिनों रोजगार हेतु पंजीयन कराने के  लिए युवाओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। सुबह से ही पंजीयन कराने आए युवा लंबी कतारों अपनी बारी का इंतजार करते नजर आ रहे हैं। रोजगार कार्यालय द्वारा जनवरी 2011 से ऑन लाइन पंजीयन सेवा भी प्रारंभ तो की गई है किन्तु वर्तमान में तकनीकी खराबी के कारण इससे पंजीयन नहीं हो पा रहा है और युवा लंबी कतारों में खड़े होकर पंजीयन कराने के लिए मजबूर हैं। पंजीयन कार्यालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार प्रतिवर्ष यहां 35 हजार से 40 हजार बेरोजगारों का पंजीयन होता है पर इनमें से केवल 30 से 35 लोगों को ही इस कार्यालय के माध्यम से रोजगार  मिल पाता है ऐसी स्थिति में रोजगार कार्यालय में पंजीयन की प्रक्रिया महज औपचारिकता बनकर रह गई है। शासन द्वारा प्रत्येक विभाग को दिए गए नियुक्ति का अधिकार और विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया इसका मुख्य कारण है। इसके साथ ही समय के साथ रोजगार की संख्या में लगातार कमी भी इसका एक कारण माना जा सकता है और अब यह स्थिति है कि 1 प्रतिशत से भी कम लोगों को इस कार्यालय द्वारा रोजगार उपलब्ध हो पाता है। इस कार्यालय का मुख्य कार्य अब केवल पंजीयन और नवीनीकरण ही रह गया है, इसके अतिरिक्त रोजगार कार्यालय द्वारा वर्ष में एक दो बार स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित किया जाता है जिसमें कम्प्यूटर के साथ-साथ चाट की दुकान, कोचिंग क्लासेस, स्वयं लेखा संधारण, विद्युत यंत्र सुधारक, स्कूटर, मोपेड रिपेयरिंग, स्टेशनरी निर्माण, ईंट एवं खपरा निर्माण, फुटकर विक्रेता, मसाला उद्योग सहित 30 व्यवसायों का निशुल्क प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो गिने-चुने लोग ही प्रशिक्षण प्राप्त करने यहां आते हैं। प्रचार-प्रसार की कमी तथा युवाओं में इसकी जानकारी का अभाव इसका मुख्य कारण माना जा सकता है। शिक्षित एवं अशिक्षित बेरोजगारों को उनकी तकनीकी एवं शैक्षणिक योग्यता, दक्षता, शारीरिक सक्षमता, मानसिक दृढ़ता एवं व्यावसायिक अभिरुचि के अनुरूप वर्तमान परिवेश में दिन-प्रतिदिन बदलती रोजगार, स्वरोजगार एवं प्रशिक्षण की प्रकृति के संबंध में अद्यतन जानकारी उपलब्ध कराना ही इस कार्यालय का प्रमुख कार्य है परंतु शासन-प्रशासन की उपेक्षा तथा उदासीनता के चलते रोजगार कार्यालय वर्तमान में बेहद उपेक्षित है। इस कार्यालय में रायपुर के अतिरिक्त नवनिर्मित जिला गरियाबंद और बलौदाबाजार का भी कार्य होता है। स्टाफ की कमी लगातार बनी हुई है। केवल तृतीय वर्ग के कर्मचारी की बात करें तो इस वर्ग के कर्मचारियों के 4 पद रिक्त हैं इसी तरह कार्यालय में 5 कम्प्यूटर ऑपरेटर की आवश्यकता है। केवल एक कम्प्यूटर आपरेटर से काम चलाया जा रहा है इससे यहां के अधिकारी तथा कर्मचारियों पर काम का अत्यधिक बोझ है इस कारण पंजीयन और नवीनीकरण कार्य भी समय पर नहीं हो पाता। पंजीयन और नवीनीकरण कराने आए लोगों को विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कार्यालय की वेबसाइट डब्ल्यू.डब्ल्यू.डब्ल्यू.सीजी.निक.इन/एक्सचेंज में लागऑन कर पंजीयन कराने की सुविधा भी प्रदान की गई है पर वर्तमान में तकनीकी खराबी तथा इसे लगातार अपडेट न करने के कारण पंजीयन नहीं हो पा रहा है। आंकड़ों पर विचार किया जाए तो इस सेवा के प्रारंभ होने के बाद से इक्का-दुक्का लोगों ने ही इससे अपना पंजीयन कराया है। इसका मुख्य कारण ऑनलाइन पंजीयन की प्रक्रिया तथा लोगों में सेवाओं के व्यापक प्रचार का अभाव है। ऑनलाइन पंजीयन प्रक्रिया के तहत पंजीयन होने के 15 दिनों के भीतर पंजीयन कराने वाले व्यक्ति को स्वयं कार्यालय में उपस्थित होकर अपने कागजातों का सत्यापन कराना अनिवार्य है इसलिए भी लोग ऑनलाइन कराने में रूचि नहीं लेते क्योंकि अंतत: उन्हें कार्यालय के चक्कर तो काटने ही पड़ते हैं ऐसी स्थिति में ऑनलाइन पंजीयन की बेहतर तो प्रत्यक्ष पंजीयन से व्यवस्था है। इस प्रक्रिया के तहत गलती होने की संभावना कम होती है। रोजगार कार्यालय के उपसंचालक बी.एस. नेताम ने बताया कि किसी समय जब रोजगार कार्यालय से सीधी भर्ती की जाती थी तो लोगों की भीड़ नौकरी पाने के लिए रोजगार कार्यालय में जमा होती थी पर अब कार्यों का विकें्रदीकरण हो गया है। प्रत्येक विभाग को राज्य शासन द्वारा नियुक्ति का सीधे तौर पर अधिकार प्रदान किया गया है इस कारण अब लोग यहां नौकरी के लिए नहीं आते।बेरोजगारी  भत्ता जो 500 रुपए प्रतिमाह शासन द्वारा निर्धारित किया गया है उसके लिए भी कम लोग ही आते हैं। अब रोजगार कार्यालय का कार्य केवल पंजीयन, नवीनीकरण और कभी कभार होने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम तक ही सिमट कर रह गया है। स्टाफ तथा सुविधाओं की कमी भी लगातार बनी हुई है। ऐसी स्थिति में रोजगार कार्यालय को ऑक्सीजन की आवश्यकता है। दो अन्य जिलों के भी कार्य यहीं से संपादित होने के कारण वर्तमान में कार्य के अतिरिक्त बोझ से भी रोजगार कार्यालय के अधिकारी एवं कर्मचारी जूझ रहे हैं। बहरहाल युवाओं के भविष्य से जुड़े कार्यों को संपादित करने वाला यह कार्यालय बुनियादी सुविधाओं तथा अतिरिक्त स्टाफ जैसी आवश्यकताओं के पूरा होने की बाट जोह रहा है। अब देखना यह है कि आखिर कब इस कार्यालय को ये सुविधाएं मिल पाती है।


सफाई व्यवस्था में गैंगवार


रायपुर, 16 जुलाई। राजधानी के नगर पालिक निगम के सफाई विभाग में इन दिनों सेन्ट्रल गैंग और जोन गैंग के नाम पर बंदरबाट चल रही है। शहर की सफाई व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने तथा विभिन्न आवश्यक कार्यों के लिये निगम द्वारा विभिन्न आवश्यक कार्यों के लिये निगम द्वारा सेंट्रल तथा जोन गैंग बनाकर सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति की गई थी पर वर्तमान में गिने चुने कर्मचारी ही कार्य पर उपस्थित हो रहे हैं। लेकिन सभी कर्मचारियों की उपस्थिति दर्ज कराकर पैसे का भुगतान करा लिया जाता है। विदित हो कि शहर में होने वाले विभिन्न आयोजनों तथा आवश्यक कार्यों के लिये शहर स्तर पर कम से कम 40 कर्मचारी तथा जोन स्तर पर 20-25 कर्मचारियों की नियुक्ति की जानी थी और कागजों में यह नियुक्ति की भी गई पर इतने कर्मचारी कार्यस्थल पर कभी भी उपस्थित नहीं रहते हैं। जबकि इनमें से अधिकांश कर्मचारियों की उपस्थिति दर्ज कराकर हर महीने का वेतन निकाला जा रहा है इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की आशंका है क्योंकि सफाई कर्मचारियों द्वारा समय पर वेतन नहीं दिये जाने का आरोप भी अधिकारियों पर लगाया जाता रहा है। जोन स्तर पर भी यही स्थिति है सभी 8 जोनों में जोन गैंग बनाया तो गया है पर इनके द्वारा कब कहां कार्य किया जाता है इसे लेकर हमेशा संदेश बना रहता है। निर्धारित संख्या से कम कर्मचारियों की नियुक्ति कर पूरे कर्मचारियों के पैसे का भुगतान करने का मामला भी अभी कुछ ही दिनों पूर्व सामने आया था ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट है कि सेंट्रल तथा जोन गैंग के नाम पर अधिकारियों द्वारा पैसों का जमकर बंदरबाट किया जा रहा है। इसका बुरा प्रभाव शहर की सफाई व्यवस्था पर पड़ रहा है। विशेष रूप से बारिश के मौसम में शहर की सफाई व्यवस्था का और भी बुरा हाल है। जगह-जगह कीचड़ और गंदगी नजर आने लगी है। ऐसी स्थिति में अधिकारियों द्वारा सफाई कर्मचारियों के पैसे से खेले जा रहे खेल से यह स्पष्ट है कि निगम के अधिकारी शहर की सफाई व्यवस्था को सुधारने के लिये कितने गंभीर हैं। इस मामले में निगम से जुड़े जनप्रतिनिधियों की खामोशी से उनकी भी अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर पैसों के इस खेल में शामिल होने की संभावना को बल मिलता है। बहरहाल जहां एक ओर शहर की सफाई व्यवस्था दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। इससे आम जनता में नाराजगी का वातावरण बना हुआ है।

राखी के लिए पीले रंग की डाक पेटी


रायपुर, 16 जुलाई। डाकघरों में रक्षाबंधन त्यौहार के मद्देनजर इन दिनों तैयारियां की जा रही है। रविवार को डाक विभाग द्वारा शहर के विभिन्न स्थानों पर राखी भेजने के लिए पीले रंग की डाकपेटी लगाकर लोगों से राखी वाले डाक इसी पेटी में डालने की अपील की गई है। रायपुर के विभिन्न स्थानों तथा उपडाकघर में इस डिब्बे को लगाया गया है। डाकघर के अधीक्षक एस.के. सोनी ने बताया कि त्यौहार के दौरान सामान्य डाक की अपेक्षा समय पर गंतव्य तक राखी पुहंचाने के दबाव को कम करने यह व्यवस्था की गई है। इससे रूटीन डाक से राखी को अलग करने में होने वाली परेशानी कम होगी। भेजी गई राखी समय पर अपने गंतव्य तक पहुंच सकेगी। इसी क्रम में इस बार मालवीय रोड स्थित मुख्य डाकघर के अलावा विवेकानन्द आश्रम, सुन्दरनगर, गंज चौक, बिरगांव, रविग्राम सहित शहर के अन्य उपडाकघरों में पीली डाकपेटी की व्यवस्था रहेगी। साथ ही साथ सिद्धार्थ चौक टिकरापारा, सदरबाजार और गुरूनानक चौक इलाके में भी विशेष डाकपेटी लोगों की सुविधा के लिए उपलब्ध रहेगी। इसके अतिरिक्त बरसात को ध्यान में रखकर डाक विभाग द्वारा राखी मेल में स्पीड पोस्ट के लिए पांच रूपये का लिफाफा विशेष रूप से बनाया गया है। इससे लिफाफों के गीले होने, फटने आदि का डर नहीं होगा। अधीक्षक सोनी ने लोगों से अपील की है कि लोग इन सुविधाओं का लाभ अवश्य उठायें तथा राखी पीले डाकपेटी में ही डालें।

अन्वेषणेन अपि अनुपलब्धा : छात्रा: सन्ति


संस्कृत महाविद्यालय का अस्तित्व खतरे में
रायपुर, 17 जुलाई। देववाणी की शिक्षा देने वाला प्रदेश का इकलौता संस्कृत महाविद्यालय ज्ञान का प्रकाश फैलाने विद्यार्थियों के लिए तरस रहा है। एक ओर जहां हिन्दी, अंग्रेजी व छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रचार-प्रसार व सिखाने के लिए धन का व्यय किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर विश्व की तमाम भाषाओं की जननी संस्कृत अपनी ही धरती में दम तोडऩे की कगार पर है। स्कूल व महाविद्यालयों में अनिवार्य विषय के रूप में संस्कृत भाषा को महत्व नहीं देने तथा सरकारी नौकरियों की भर्ती में संस्कृत ज्ञान को शर्त के रूप में शामिल नहीं करने के कारण यह स्थिति निर्मित हुई है। हालत यह है कि नि:शुल्क शिक्षा देने के बाद भी संस्कृत महाविद्यालय को ढूंढने से भी विद्यार्थी नहीं मिल रहे हैं। छत्तीसगढ़ का एकमात्र संस्कृत कॉलेज इन दिनों अपने अस्तित्व की रक्षा की लड़ाई लड़ रहा है। छात्रों की कमी से जूझते इस महाविद्यालय पर अब अस्तित्व का संकट गहराने लगा है। विगत वर्ष इस महाविद्यालय में कुल 294 छात्र संस्कृत का अध्ययन कर रहे थे पर वर्तमान में प्रवेश प्रारंभ होने के डेढ़ माह बीत जाने के बाद भी कुल 15 छात्रों ने ही प्रवेश के लिए आवेदन किया है। महाविद्यालय का स्टॉफ, अध्यापकगण एवं प्राचार्य इसके अस्तित्व को लेकर गहरी चिंता में है। 2 अक्टूबर सन् 1955 को गांधी जयंती के अवसर पर इस महाविद्यालय का शुभारंभ किया गया था तथा वर्तमान भवन जो जी.ई. रोड में स्थित है का शिलान्यास 15 सितंबर 1956 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। विदित हो कि शासकीय दूधाधारी श्री राजेश्री महंत वैष्णव दास स्नातकोत्तर संस्कृत महाविद्यालय प्रदेश का एकमात्र संस्कृत महाविद्यालय है जो रविशंकर शुक्ल विवि के अंतर्गत संघटक महाविद्यालय के रूप में मान्य तथा संबद्धता प्राप्त है। प्रवेश तथा अध्ययन शुल्क काफी कम होने के बाद भी छात्रों की संख्या इस महाविद्यालय में कम रहती है। इस शैक्षणिक वर्ष में तो यह महाविद्यालय अस्तित्व बचाए रखने के संकट से ही जूझ रहा है। इसका मुख्य कारण संस्कृत विषय के प्रति लोगों में उदासीनता तथा संस्कृत का रोजगारमूलक विषय न होना है जबकि बी.ए. क्लासिक्स अर्थात् स्नातक प्राच्य संस्कृत के लिए एक बार ही छात्रों से केवल आठ सौ रुपए की राशि ली जाती है। वहीं शासन के नियमों के कारण बी.ए. क्लासिक्स, प्राच्य संस्कृत, एम.ए.क्लासिक्स पूर्व एवं अंतिम कक्षाओं में शिक्षण शुल्क ही नहीं लिया जाता है। इस प्रकार नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था प्रदान करने वाला यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र महाविद्यालय है। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पी.सी. अग्रवाल ने बताया कि वर्तमान में छात्रों की संख्या बेहद कम है। छात्राओं को यहां पूर्णत: नि:शुल्क शिक्षा देने के बाद भी एक भी छात्रा ने प्रवेश नहीं लिया है। हालांकि अभी शिक्षाकर्मी सहित स्कूलों में संस्कृत शिक्षक की मांग के चलते कुछ लोग इस विषय में रुचि अवश्य ले रहे हैं पर उनमें भी संस्कृत माध्यम में ही परीक्षा होने को लेकर भ्रम की स्थिति है। इसलिए पर्याप्त संख्या में यहां प्रवेश नहीं ले पा रहे हैं। विवि प्रशासन द्वारा भी विद्यार्थियों को यह स्पष्ट नहीं किया जा  रहा है कि परीक्षा का माध्यम हिन्दी होगा या संस्कृत, प्रश्नपत्र हिन्दी में पूछे जाएंगे या संस्कृत में इसलिए प्रवेश पाने वाले छात्रों के मन में शंकाएं बनी हुई है। संस्कृत महाविद्यालय अपने छात्रों को सभी तरह की सुविधाएं प्रदान करता है। उन्हें पाठ्य सामग्री महाविद्यालय के ही ग्रंथालय से नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाती है। इसके अतिरिक्त छात्र-छात्राओं के लिए छात्रावास की सुविधा भी है तथा समय-समय पर यहां अनेक आयोजन भी होते रहते हैं जो छात्रों के बौद्धिक तथा चारीत्रिक विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। समय -समय पर क्रीड़ा प्रतियोगिता सहित सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। इन सबके बावजूद छात्रों की कमी से यहां के प्राध्यापकगण, स्टॉफ तथा प्राचार्य में गहरी चिंता व्याप्त है। प्राचार्य ने कहा कि इस कमी को दूर करने तथा अधिकाधिक छात्रों तक संस्कृत को पहुंचाने के लिए डिप्लोमा तथा रोजगारमूलक कोर्स प्रारंभ करने पर विचार किया जा रहा है। विवि से इसके लिए अनुमति मिलते ही अध्ययन प्रारंभ कर दिया जाएगा। संस्कृत दर्शन जैसे विषयों को भी यहां प्रारंभ करने पर विचार किया जा रहा है। उम्मीद है कि आगामी शैक्षणिक सत्र से इन सभी विषयों के प्रारंभ होने के बाद छात्रों की संख्या में वृद्धि होगी। हालांकि महाविद्यालय प्रशासन को इस बात पर अवश्य संतुष्टि है कि इस महाविद्यालय के द्वारा संस्कृत को बचाकर रखा गया है तथा अतिप्राचीन और दुर्लभ पांड़लिपियों को भी महाविद्यालय  द्वारा संरक्षित करके रखा गया है जो संस्कृत विषयक शोध छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। संस्कृत के व्यापक प्रचार-प्रसार की कमी भी इस महाविद्यालय को उपेक्षा का शिकार बना रही है। कहने को तो संस्कृत बोर्ड का गठन किया गया है पर उसके द्वारा भी संस्कृत के प्रचार-प्रसार हेतु सार्थक तथा उल्लेखनीय कार्य नहीं किया जा सका है। बहरहाल देववाणी कही जाने वाली संस्कृत भाषा की उपेक्षा से महाविद्यालय के अस्तित्व पर संकट गहरा गया है अब आवश्यकता इस बात की है कि संस्कृत का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए वहीं इस विषय को रोजगार से जोड़े जाने की भी आवश्यकता महसूस की जा रही है |