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Wednesday 18 July 2012

ई-मेल ने घटाई डाकघरों की आय

"पत्र जो पहले कभी थे रिश्तों के आधार आज अपने पंख खोकर खो चुके वह धार 

मोबाईल और मेल ने अब छोटा किया संसार आज क्षण में हम पहुंचते सात सागर पार"


रायपुर, 24 जून। एक वक्त था जब हर रोज हर घर में डाकिए के आने का इंतजार बेसब्री से किया जाता था। अब वक्त बदल गया है। टेक्नालाजी का जमाना है। डकिया का वजूद आज भी है लेकिन अब उनका इंतजार नहीं होता क्योंकि हर घर में अब सुबह से रात तक कम्प्यूटर पर कई बार ई-मेल खोले जाते है। नतीजा डाकघरों के माध्यम से पत्र भेजने व पाने की संख्या घटकर आधी से भी कम हो गई है। इससे डाकतार विभाग की आमदनी का ग्राफ भी काफी नीचे आ गया है। नतीजा अब डाकघरों को आय बढ़ाने पोस्टकार्ड, लिफाफा के साथ घड़ी, सोना, आवेदन पत्र बेचने पड़ रहे हैं। आने वाले दिनों में ऐसा न हो कि डाकघरों में तरकारी, अनाज, कपड़े आदि भी मिलने लग जायेंगे। क्योंकि डाक सामग्रियों की बिक्री अत्यंत कम हो गई है। संदेश भेजने का इतिहास काफी पुराना है। पहले हरकारे कई दिनों की यात्रा कर निर्धारित स्थान व व्यक्ति तक संदेश पहुंचाते थे। फिर लिखित फरमान व चिट्ठी पहुंचाने के लिये प्रशिक्षित कबूतरों की भी मदद ली गई। इसके बाद टेलीग्राम (तार), टेलीफोन पोस्ट आफिस, स्पीडपोस्ट जैसे सरकारी साधन व कूरियर सर्विस निजी सेवा के रूप में आए। अब 21 वीं सदी के आधुनिक भारत में मोबाइल , ई-मेल इंटरनेट ने स्थान ले लिया है. अब पत्र लिखने पढऩे व भेजने पाने का मजा खत्म हो गया है डाकिए न पत्र के इंतजार का रोमांच अब कहां रहा। टेलीग्राम (तार) आने से अनहोनी की आशंका से जो डर समा जाता था उससे आज की पीढ़ी अंजान है। अब तो सब कुछ बटन दबाते ही फटाफट।  डाकघर तो पत्रों के आदान प्रदान के लिये तो जाने जाते हैं बल्कि अब इसकी पहचान सोने के सिक्के तथा घडिय़ों के विक्रय केंद्र के रूप भी होने लगी है। मुहर, खाकी वर्दी पहने पोस्टमैन और लाल रंग के डाक डिब्बे भी अब कम ही देखने को मिलते हैं। इनकी जगह अब फोन, फैक्स, मोबाईल इंटरनेट तथा फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्किग साइट्स ने ले ली है। पत्र अभिव्यक्ति का बेहद सशक्त व रोचक माध्यम है पर अब समयाभाव और सुविधाओं के अतिरेक के साथ ही पत्र विलुप्त होते जा रहे हैं। व्यक्तिगत पत्र तो गिने चुने ही लिखे जाते हैं वही कार्यालयीन पत्रों के लिये् फैक्स और ईमेल का प्रयोग किया जाने लगा है। मुख्य डाकघर से मिली जानकारी के अनुसार जहां पहले 10 से 15 हजार रूपये तक के पोस्टकार्ड डाक, टिकटें,लिफाफे, अंतर्देशीय आदि की बिक्री प्रतिदिन होती थी वहीं अब बमुश्किल 1000 से 1500 रूपये तक की बिक्री प्रतिदिन होती है। आजकल डाकघर सोने के सिक्के तथा एचएमटी की घडिय़ों के शोरूम के रूप में अपनी पहचान बना रहा है वहीं प्रतियोगी परीक्षाओं के फार्म का विक्रय भी समय समय पर यहां से किया जाता है। आज से 10-15 साल पहले और अब की स्थिति की तुलना की जाये तो डाकघरों में व्यापक परिवर्तन हुआ है। किसी समय में पत्रों की आवाजाही सहित अन्य सभी कार्य हाथों से किये जाते थे पर अब डाकघर के कर्मचारियों के हाथों में लाल नीले कलम के स्थान पर कार्ड लैंस माऊस नजर आते है।  सारे रिकार्ड मोटी-मोटी फाइलों के स्थान पर कम्प्यूटर में रखे जाते हैं। कभी पत्रों के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने में समय लगता था पर अब ऐसा नहीं है पत्र कम समय पर ही अपनी मंजिल तक पहुंच जाते हैं। निजीकरण का प्रभाव भी डाकघरों पर पड़ा है। अब कोरियर सेवाओं द्वारा पत्रों और पार्सलों को बेहद कम समय में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया जा रहा है जिससे लोग अब कोरियर कंपनियों पर अधिक विश्वास करने लगे हैं इसका सीधा असर डाकघरों के व्यवसाय पर हुआ है। पर पार्सलों तथा पत्रों की आवाजाही पर विचार किया जाये तो अब भी लगभग 20,000 पत्र तथा पार्सल मुख्य डाकघरों से उपडाकघरों तथा वहां से अपनी मंजिल तक पहुंचाए जाते हंै। वर्तमान में डाकघरों से संचालित होने वाला बैकिंग व्यवसाय खासी वृद्घि कर रहा है। पोस्टआफिसों में खातेदारों की संख्या में लगातार वृद्घि हो रही है। चालू खाते, बचत खाते आवर्ती जमा खाते आदि के माध्यम से डाकघर खातेदारों को अच्छी सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है। इसके अतिरिक्त डाकघर की बीमा योजनाएं भी लोगों में बेहद लोकप्रिय हैं। एजेंटों की संख्या की बात की जाए तो इसमें काफी कटौती हुई है इसके पीछे कारण लगातार घटते कमीशन को माना जा रहा है। गौरतलब है कि महात्मागांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में डाकघरों की महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि इस योजना में भुगतान का आधार ही डाकघर है। वहीं डाकघरों में लोग अब सोने के सिक्के और घडियां खरीदने के लिये भी बड़ी संख्या में आने लगे हैं। यहां आधा ग्राम से 50 ग्राम तक वजनी सोने के सिक्के तथा 350 रू. से लेकर 4300 रूपये तक की घडिय़ां उपलब्ध हैं। यहां बेचे जाने वाले सोने के सिक्कों में 99.9 प्रतिशत तक शुद्घता की गारंटी है जिससे लोग यहां से सोना खरीदना पसंद करते हैं। स्पीड पोस्ट भी लगातार हो रहे सुधारों के बाद अपनी लोकप्रियता को बनाए रखने में कामयाब हो पाया है आजकल रात 8 बजे तक स्पीड पोस्ट किया जाने लगा है जिससे लोगों को आसानी होती है। कम समय तथा विश्वसनीय होने के कारण लोग महत्वपूर्ण पत्रों कार्यालयीन पत्रों को स्पीड पोस्ट से ही भेजना पसंद करते हैं जिससे पहले की अपेक्षा स्पीड पोस्ट की संख्या में इजाफा हुआ है। समय बदलने के साथ डाकघरों का कार्यक्षेत्र उसका महत्व सब कुछ बदल गया है जहां पत्रों की संख्या में कमी आई वहीं पोस्टमैनों की संख्या भी लगातार घटते क्रम में है आज राजधानी रायपुर के मुख्य डाकघर में केवल 37 पोस्टमैन है इसके अतिरिक्त 17 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी भी है जो घरों में पत्र पहुंचाने का कार्य करते हैं। पोस्टमैनों की नई भर्ती नहीं होने के कारण पत्रों को पहुंचाने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी कम वेतन में ही अधिक कार्य करते हैं। 'पत्र जो पहले कभी थे रिश्तों के आधार आज अपने पंख खोकर खो चुके वह धार मोबाईल और मेल ने अब छोटा किया संसार आज क्षण में हम पहुंचते सात सागर पारÓ   डाक सामग्रियों के दर आज कल के बच्चों को पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय पत्र, मनीआर्डर व इसकी कीमत की जानकारी नहीं है। पोस्ट कार्ड    -    50 पैसे अंतर्देशीय    -    ढाई रूपये लिफाफा    -    पांच रूपये डाक टिकिटें    -    1,2,5,10,10,20 रूपये रजिस्टर्ड लिफाफा    -    22.50 रूपये स्पीड पोस्ट    -    25 रूपये न्यूनतम             (वजन अनुसार) खाता खोलने का न्यूनतम     -    100 रू.