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Tuesday 31 May 2011

विश्व तम्बाखू निषेध दिवस – एक चिंतन

म्बाखू सेवन से होने वाली घातक और जानलेवा बीमारियों से आम जन को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रति वर्ष ३१ मई को विश्व तम्बाखू दिवस के रूप में मनाया जाता है. तम्बाखू का सेवन चाहे वह बीडी, सिगरेट के रूप में हो चाहे गुटखा, गुडाखू या खैनी के रूप में, इसके सेवन करने वाले व्यक्तियों में मुह गले व फेफड़े के कैंसर होने की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती है. विश्व में तकरीबन ८ लाख लोग प्रतिवर्ष तम्बाखू सेवन से होने वाली घातक बीमारियों का शिकार होकर असमय काल के गाल में समा जाते हैं.

विश्व में लगभग १०० करोड लोग किसी ना किसी रूप में तम्बाखू का सेवन करते हैं जिनमें से करीब ३० प्रतिशत (अर्थात ३० लाख) संख्या हमारे देश में ही है. तमाम पाबंदियों, चेतावनियों के बावजूद यह संख्या निरंतर ऊपर की ओर ही जा रही है. तम्बाखू का सेवन करने वालों में सभी आयु वर्ग के लोग सामान रूप से सम्मिलित है. युवा वर्ग शौक में धूम्रपान और तम्बाखू उत्पादों का सेवन प्रारंभ करता है और कालांतर में उनका यह शौक लत बनकर उन्हें ही अपने खतरनाक पंजों में दबोच लेता है और जिनसे वे चाह कर भी छूट नहीं पाते. चौंकाने वाला तथ्य धूम्रपान के प्रति महिलाओं की बढ़ती रूची है. हमारे देश में ग्रामीण महिलाओं में तम्बाखू युक्त उत्पाद गुडाखू अत्यंत लोकप्रिय है और इसका इस्तेमाल उनके द्वारा दन्त मंजन के रूप में किया जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार पुरुष और महिलाओं में तम्बाखू उत्पाद सेवन का अनुपात २:१ है. कोई आश्चर्य नहीं कि आज देश में मुह, गले, फेफड़े के साथ बच्चादानी कैंसर के मरीजों की संख्या में चिंतित करने वाली वृद्धि दर्ज की जा रही है.

यद्यपि तम्बाखू उत्पादों पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने जैसी चेतावनी अंकित होते हैं लेकिन तम्बाखू उत्पाद सेवन करने वालों की बढ़ती संख्या इन चेतावनियों के कारगर नहीं होने की कहानी स्वयम ही बयान कर देती हैं. निश्चित है देश की युवा पीढ़ी को इसके भयानक दुष्प्रभावों से बचाने के लिए तमाम स्वयमसेवी संगठनों द्वारा वृहत और सघन जनजागरूकता अभियान संचालित करने साथ साथ शाशकीय स्तर पर भी चेतावनियों से आगे जाकर ज्यादा गंभीर, प्रभावी एवं ठोस उपाय करने की दिशा में कदम उठाना होगा.

विश्व में अनेक देशों हैं जहां  तम्बाखू सेवन से उपजने वाले बीमारियों के मद्देनज़र तम्बाखू पर आंशिक या पूर्ण प्रतिबन्ध लागू हैं. आयरलेंड विश्व का ऐसा पहला देश है जिसने तम्बाखू का किसी भी प्रकार से उपयोग पर पूर्णतः पाबंदी लागू किया है. हमारे देश में भी सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबन्ध है लेकिन भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में जहां की बहुत बड़ी जनसंख्या के बीच धूम्रपान, खैनी गुटखा और गुडाखू आवभगत तथा मेहमाननवाजी का जरिया है, में यह प्रतिबन्ध एकदम नाकाफी है और यहाँ भी तम्बाखू उत्पाद निर्माण, व्यापार और सेवन पर पूर्ण प्रतिबन्ध के अलावा जमीनी स्तर पर सामाजिक और वैचारिक क्रान्ति आवश्यक है.

आईये, आज विश्व तम्बाखू निषेध दिवस पर हम स्वयम ही दृढ निश्चय के साथ अपने ऊपर तम्बाखू प्रतिबंध को लागू करने का संकल्प लेकर स्वस्थ्य और खुशहाल जीवन का आधार तैयार करें.

तम्बाखू उपयोग से करें इनकार, तभी होंगे बंद बीमारियों के द्वार

-ललित मिश्रा.
(लेखक छत्तीसगढ़ प्रदेश के जाने माने साहित्यकार, कवि, चिन्तक एवं समाजसेवी  हैं.)